बेताबियों का सिलसिला है हर सू, शबोरोज़ इस कदर तंहा कर गए,
ग़र यू बिछड़ना ही था,तो मुलाकात क्यों हमसे यू कर गए।
दिल है बेचैन, ज़हन परेशॉ-सा, निग़ाहें भटक रहीं है दर-ब-दर,
वो आए महमान बनकर दो दिन और फिर पूरा शहर सूना कर गए।
ज़िद थी कभी तुझे पाने की, वो जूनून की हद तक,
वो मिलने आए हमारे मरने से पहले, दुआएँ पूरी होते ज़माने लग गए।
कह दो के ले जाए वो फूल, तोफ़े, अहसास और यादें सारी,
इस क़दर मुहब्बत दी के, हमें अपनों में ग़ैर वो कर गए।
एक शिकवा था ज़िदगी में के मुहब्बत ना मिली हमें कभी,
वो आए महर्बा बनकर और मुहब्बत मुक्कमल कर गए।