हमारा बेबाक मिलना-जुलना डाल सकता है, अपनो की ज़िन्दगी मुश्किल में,
वक़्त है नाज़ुक, हालात हैं नागवार दूरी में है ख़ैर, फिलहाल ज़रा सम्भाल के।
यू हाथ ना बड़ा देना, यू तपाक से गले ना मिला लेना, संभाले रखना दूर से ही साथ ,
पुराने हो गये मिलनेवाले रेवाज़, अब दूर से ही करना मुलाक़ात, फिलहाल ज़रा सम्भाल के।
यू बाज़ारों में ना जाना बेवज़ह, रौनके तलाश ना करना सड़कों पर तफ़री के लिए,
घर में रह कर ही है हिफ़ाजते, के कुछ रोज़ और रहो करके सब्र, फिलहाल ज़रा सम्भाल के।
होली भी रंगीन आयेंगी एक ज़रूर, ईद भी घोल जाएगी मिठास महफिले सजा करेंगी,
मोहब्बतों हवाओं में बिख़र जायगी, फिर बेबाक़ मिला करेंगे, फिलहाल ज़रा सम्भाल के।
दहशतज़दा हैं हम सब इंसानो को बदहवास देखकर, हम उदास सही, मायूस नहीं पर,
ज़िन्दगी फिर खुशगवार होगी, बहारें खील कर आएगी, फिलहाल ज़रा सम्भाल के।