Thursday, 6 August 2020

हमें वो मलवा लौटा दो


मुमकिन है के वो सिर्फ एक मलवा या कूड़ा हो तुम्हारे लिए,

हमारे नसलों के लिए वो सबक़ हैवो निशानी है हमारी नाकामियाबी की,

हज़ारों टूटे दिल और आँखो से बहे अनगिनत आंसुओं की,

हमारे इंसाफ़ से टूटे यक़ीन और हालात से समझोते की।


मुमकिन है तुम अब ख़ुश हो बहुत और जशन मना रहे होंगे,

क्यूँ की यह जीत है तुम्हारे अहम और ज़िद की,

अब क़ानूनसत्ताअदालतें और अवाम भी तुम्हारी है,

मैं सवाल नहीं उठा रहीपर मायूसी बदस्तूर है।


तुम जब चाहोकिसी भी भीड़ को मुजरिम बना दो,

तुम जिसे चाहो भीड़ से पिटवा दोमरवा दो कोई भी जुर्म बता कर,

उम्रे गुज़र जायेगी मासूम की ख़ुद को बेगुनाह साबित करने में,

ख़बरें भी सब तुम्हारे मुताबिक़ ही होंगीक़त्ल होगा पर कोई क़ातिल नहीं।


मुमकिन है के तुम हँस दोइलतजा पर मेरी,

पर वो जो बेकार पड़ा मलवा हैउससे हमें लौटा दो,

इजाज़त नहीं तुम्हें के उसे किसी नापाक जगह फेंका जाए,

उसकी फिर तोहींन होवो मलवा नहीं जज़्बात हैं हमारे।


हमारा किसी के ईश्वर पर सवाल नहींना किसी की आस्था पर इतराज़ है,

तुम्हें हक़ है अपने ख़ुदा को मानो और पूजो शान से,

तुम ही तो कहते हो के ईश्वर कण-कण में रहते हैं,

ख़ुशी भी है के अब तुम्हारे ईश्वर हमारी इबादतगाह में पूजे जायगे।