तन्हाई में तंहा नहीं होने देता, ख़ामोशी में करता है एक शोर सा,
कोई आहट नहीं है किसी की, फिर कौन है ये मेरे आसपास।
सुबहाओ शाम मुझ में ढलता है, हर लम्हे साथ चलता है,
जिस्म नहीं, साँसे नहीं, निगाहें नहीं, पर अहसास है कोई आसपास।
गर देखना चाहु तो देखाई नहीं देता, कहता है जो वो सुनाई नहीं देता,
अजब से एहसासों और अनसुने लफ़्ज़ों का कारवाँ है मेरे आसपास।
वो कौन है जो कैद नहीं करता और ना रिहा ही करता है कभी,
आज़ाद हो कर भी आज़ाद नहीं, कोई दायरा सा है मेरे आसपास।
ये जज़्बात हैं मेरे ही कुछ या वहम है जो मुझ में पलता है,
आख़िर क्यों लगता है के, एक साया सा रवा है मेरे आसपास।