Tuesday, 26 November 2024

दौर आयेगा


है मेरा लहू क़ातिल की आस्तीन पर,

और ज़ालिम ख़ुद को मक़तूल कहता है,

सियासी बैठे हुए हैं मज़हब का चोला पहने,

देखिये कैसे मेरे मुल्क़ की हवा में ज़हर घोला है।

 

करूँ क्या के अमन आये फिर से गुलिस्ता में,

किताबों तक में उन्होंने नफ़रतों का पाठ जोड़ा है,

शातिर हैं और वो जो सुकूँ की बात करते हैं,

इन्होंने ही जाने कितने लोगों के घरों को तोड़ा है।

 

तरक़ीबे लगाते हैं रोज़ नई, के दरारें रहे क़ायम,

मैं तन्हा हूँ के दारोग़ा और क़ानून सब उनका है,

ये दौर दंगों का ख़त्म हो तो, बात तरक़्क़ी की जाये,

नफ़रतों ने कहाँ किसी को ज़िंदा छोड़ा है।

 

बच्चे मासूम के पूछते हैं, सवाल रोज़ मुझ से,

ज़रा से उलझ जाने पर क्यों, साथी हमें आंतकवादी कहता है,

है मेरी जवाबदेही क्यों के जब कोई ग़लत काम हो,

मेरा मज़हब पर क्यों वो इल्ज़ाम सब लगता है।

 

सीचा है अपने सरज़मी को अपने, लहू से मैंने,

दफ़न हैं इसमें मेरे बुज़ुर्गो की तमाम क़ुर्बानियाँ,

हैं बुलंदियो की दास्ताने मेरी, हैं दोस्तियों के फ़साने भी मेरे,

दौर आयेगा मोहब्बत की बात होगी, वफ़ा पर सवाल जो उठता है।


Monday, 6 May 2024

तुझे मालूम ना था

 मुस्कुरा दिए, गफ़लत में कभी आया जो तेरा ख़याल,

तू अब हमसफ़र ना सही, पर कभी हमख़याल तो था।

 

ये गर्मी की लंबी दोपहरी, सर्द तंहा रातें करती हैं कई सवाल,

कभी बारिशों में नम आँखो से ख़ुद को, हमने समझाया था।

 

यू तो कह सकते हैं मोहब्बतों की दस्तानों में एक दस्ता अपनी भी,

दर्द से बावसता होते हैं कई रिश्ते, तू हमनवा था पर बवाफ़ा ना था।

 

दिल की ज़ुबां होती तो वो करता बायाँ, आँख होती तो वो रोता बेपनाह,

लबो पर मुस्कुराहट लिये कह देते हैं, इश्क़ उसका मजबूर बहुत था।

 

मंज़िले अलग होकर मिलती नहीं कभी, अब पुकारना है बेवजह,

जो चले गये लौटकर नहीं आते कभी, क्या तुझे मालूम ना था।


Tuesday, 2 January 2024

गुमशुदा

 ये कौन-सी जंग, ये कौन-सी ताक़त का मुज़ाहिरा है,

बच्चों और औरतों पर बारिश की तरह गिरते बम,

ज़िन्दगी लाचार है, हर तरफ मौत का तमाशा है,

दुनिया ख़ामोश है, इस क़दर इंसानियत गुमशुदा है।

 

बम के धमाके, आग बरसाता सुभो-शाम आसमा,

ये धुए और धूल में ज़िन्दगियों का खो जाना,

बिल्डिंगो का किसी ताश के पत्तो की तरह भरहा के,

किसी मलवे के पहाड़ में दफ़न ज़िन्दगी गुमशुदा है।

 

बचे हुए लोगो का मलवे में तलाशना,

कुछ जिस्म, कुछ लाशो का टुकड़ो में मिलना,

आँसू, चीखें, दर्द से तड़पते, मदद को पुकारते लोग,

अपनों को ढूढ़ते, कुछ मिलते तो कुछ लोग गुमशुदा हैं।

 

ये दर्द है के थमता नहीं, चीखें हैं के बदस्तूर हैं,

ये तड़प, ये बेबसी, ये बनती टूटती उम्मीदें,

किसी जद्दोजहद से झूझती अनगिनत ज़िंदगियाँ,

जुल्म है, ज़ालिम ताकत के ग़ुरूर में गुमशुदा है।

 

लाचारी है, मासूमों पर रहम, किसी को आता नहीं,

इंसानियत का तकाज़ा, कहीं नज़र नहीं आता,

दिल दहलानेवाली लाशों का अम्बार है हर सू,

जंग नाम पर मौत के बाज़ार में ग़ैरत गुमशुदा है।