मुस्कुरा दिए, गफ़लत में कभी आया जो तेरा ख़याल,
तू अब हमसफ़र ना सही, पर कभी हमख़याल तो था।
ये गर्मी की लंबी दोपहरी, सर्द तंहा रातें करती हैं कई सवाल,
कभी बारिशों में नम आँखो से ख़ुद को, हमने समझाया था।
यू तो कह सकते हैं मोहब्बतों की दस्तानों में
एक दस्ता अपनी भी,
दर्द से बावसता होते हैं कई रिश्ते, तू हमनवा था पर बवाफ़ा ना था।
दिल की ज़ुबां होती तो वो करता बायाँ, आँख होती तो वो रोता बेपनाह,
लबो पर मुस्कुराहट लिये कह देते हैं, इश्क़ उसका मजबूर बहुत था।
मंज़िले अलग होकर मिलती नहीं कभी, अब पुकारना है बेवजह,
जो चले गये लौटकर नहीं आते कभी, क्या तुझे मालूम ना था।