हर रोज़ की ख़बरें हैं किसी ना किसी के मर जाने की,
आओ तो अब, रोज़ की ज़िंदगी में, मौत की बात की जाए।
इतना क्या सोचना, मर जाएगे जब अपनी मौत आयेंगी तो,
ये जो ख़ौफ़ है मरने का उसपे, बेख़ौफ़ हो कर बात की जाए।
मायूस क्यू हो इस क़दर, क्यू डरते हो हमेशा बिछड़ जाने की सोच कर,
आओ मिलकर अब, अगली मुलाक़ात की बात की जाए।
होंगी बंदिशे और मसरूफ़ियात तुम्हें आज ज़मानेभर की,
आओ बैठ कर फ़ुरसत से आज, फ़ुरसत की बात की जाए।
दूरियों से धुधलें होने लगे वो तुमसे कुरबत के अहसास सभी,
मिलों कभी तो गले लगकर, ये सब अहसास फिर से जियें जाए।