Wednesday, 1 July 2020

कोई उम्मीद नज़र नहीं आती





ना बेवफ़ाई किसी में, ना बेमुरावत हुआ ज़माना,अजब साल आया इस दफ़ा,
अपनो से दूर रहने वालों को, मिलने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।

बेनूर है दिल का हर कोना, यादों के अँधेरे घेरे हुए हैं हर तरफ़ से,
इस बेचैन दिल को क़रार पाने की, कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।

वो जो राह देखते थे साल भर, पूछते हैं के मुलाकात को कब होगा तुम्हारा आना ,
ख़यालों में तो मिलते हैं लेकिन रूबरू होने की, कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।

ये कैसी नई रिवायाते हैं, ये कैसी ऎहतियात, ये मर्ज़ कैसा आया है लाईलाज,
ये जान ले कर जाएगा या तंहा करके जान लेगा, कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।

ज़िन्दगी क़ैद है मौत के ख़ौफ़ में इस क़दर, उलझनें और मुश्किलें हैं बेहिसाब,
 मायूसियों के काले साये में अब, कोई रोशनी, कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।



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