मुझे एतराज़ है...
उनके ज़ुल्म करने से, सचाई छुपाने से,
क़ातिलों के साथ हमदर्दी से, इंसानो को बाँट देने से,
मुझे एतराज़ है...
नोजवानो में बेकारी और बेरोज़गारी बढ़ जाने से,
बढ़ती महग़ाई से, बीमारों का इलाज मुश्किल हो जाने से,
मुझे एतराज़ है...
इबादतगाह तोड़ देने से, बस्तियाँ उजाड़ने से,
जानवर के नाम पर इंसानो को मार देने से,
मुझे एतराज़ है...
बेटियों को ना पढ़ाने वाली सोच से, उन्हें बोझ समझने से, उनके साथ हेवनित वाले सुलूक से,
मुझे एतराज़ है...
ग़रीब किसानो और मज़दूरों के हक़ दबाए जाने से,
कुर्सी की बिसातों से, सियासत के गंदे खेलों से,
मुझे एतराज़ है...
और मेरा एतराज दर्ज किया जाए, ये कहना है मेरा हुक़्मरानो से,
मैं आवाज़ हूँ, मज़लूमो की, जो कुछ ना कह पाए किसी से....
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