दस्तक दी है किसने, ये मेरे सूने दर पर आकर,
ये
कौन
है,
जो
सेहरा
में
भटकना
चाहता
है।
कैसे
कह
दू
आनेवाले
को,
के
कोई
नहीं
है
यहाँ,
मुझ
में,
मैं
ना
सही,
एक
सन्नाटा-सा
तो
चलता
है।
ख़ाली-घर,
दरों-दिवार,
खिड़की,
ये
रोशनदान,
तन्हा
हैं
साथ
मेरे,
पर
इंतज़ार
इनमें
कोई करता है।
एक
घड़ी
है
दिवार
पर,
जो
दो
पल
भी
ना
रुकी,
वक़्त
है
जो
मेरी
तरह,
मुझ
में
थमा
सा
रहता
है।
अंधेरो
में
मैं
भटका
किया,
पर
रोशन
रहा
हमेशा,
उसकी यादों में, इस दिल दीया-सा जला करता है।
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