कुछ यू ही बेवजह नही होता दुनिया में, वो लम्हा तय होगा क़ुदरत की तरफ़ से,
तेरा वो छम से आ जाना सामने, मेरा वो ठिटक कर रह जाना, हो के हैंरा-सा।
नाज़ुक तितली-सा वो हसीन लम्हा, ठहर ही गया होगा, रूबरू देखकर हमें,
हम-तुम मिले जिसमें, कुछ बातें फ़िज़ूल की, और महसूस करना मुहब्बत-सा।
मुमकिन है के हसीन हो तुम पहले से ही और मैं दिल फैंक, कुछ मस्तमौला,
पर मुहब्बत के बाद तुम और भी दिलकश लगी और मैं कुछ हो गया संजीदा-सा।
कुछ अपना सा खुद से ही बग़ावत कर बैठा, जो धड़कता था मेरे सीने में अपने,
ज़हन था की सिर्फ तुम्हारे ही खयालो में की गलियों में भटकता और गुमशुदा-सा।
सब कुछ ही दुनिया में मिल जाता तो खुआोईश-ए-जन्नत ख़ाक किया करते लोग,
जन्नत के बदले माँग लूँगा तुझे, तू मुझ से जुदा, मैं खुद से जुदा, ज़िंदगी से ही ख़फ़ा-सा।
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