तेरे आग़ोश-ए-मुहब्बत में क़ैद-ए-बमुशककत तो मिली, हमें रिहाई ना मिली,
इश्क़ किया यू बेपनाह के, काफ़िर में शुमार कर दिए गए, इबादत की पर ख़ुदाई
ना मिली।
हम पे क्यों कर ना हो बूतपरस्ती का दावा, तेरी तस्वीर जो दिल से लगाए फिरते है दर-ब-दर,
सूकून की तलाश में निकले, कैफ़ियत-ए-ब़जारा में सिर्फ़ बेचैनियाँ और रुसवाई ही मिली।
हम क्या जाने महफ़िल में तंहा कैसे होते हैं, दुनिया में खोने-पाने का अहसास किसे कहते हैं,
हम तंहा हो ही ना सके, यादो का एक क़ाफ़िला हमसफ़र हो गया, जो तुझ से जुदाई मिली।
हैंरा हैं ये ज़माना मेरी मुहब्बत देख कर, सर झुका लेती हुँ अपने जज़्बातों के एहतराम में ही,
सलाम भेजती हुँ हर साँस में तुझको ही, कुछ और ना सही, हमें इश्क़-ए-रहनुमाई तो मिली।
तू जहाँ रह ख़ुश रह, जा तेरे वास्ते दुआ कर दी सितमगर, कहोगे भी कैसे के वफ़ादारी ना रही,
हम तो
दीया हैं, ख़ाक हो जाएँगे
लौ के साथ अपनी, तशनगी जो तेरे लिए थी, कभी हरजाई ना मिली।
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