Tuesday, 31 May 2016

तू ना मिला ना सही






सब की फ़िक्र ने बरसो सोने नहीं दिया रातों को, बेचैन-बेकल रखा हर दिन हर पल,


आज बड़ा सूकून सा है हर सू, भूल कर जिम्मेदारियाँ सबकी, लापरवाही मेरे आज बहुत काम आई।



दुनियादारी की कमी थी मुझ में बहुत, अब मस्त हुँ मै ये सोच कर, जो जहाँ होगा, ख़ुश होगा बहुत,


थक गई औरों के लिए जीते-जीते, इस मतलबी दुनिया मे मुझे अब ये ख़ुदगर्ज़ी काम आई।



मैंने आँसुओं की नमी ज़ाहिर नहीं होने दी कभी किसी पर, बरसो बेजान इमारत को महफूज़ रखा,


कोई तूफ़ा मिटा नहीं सका वूजूद मेरा, ख़ुद के सम्भालने लिए मेरी, मुसतकिल-मिज़ाजी काम आई।



यू तो हम कभी ज़िंदादिल-ख़ुशमिज़ाज हुआ करते थे, कहकहे मशहूर थे दोस्तों की महफिल में,


ज़िदगी से लगाव कम होता रहा बिछड़ के तुझ से, इस बेरूख़ी के लिए, मुझे तेरी बेवफ़ाई काम आई।



ये गुमनाम साए रोज़ मर कर ख़ुदा से मिलने जाते होंगे, हम भी एक दिन साथ हो लेंगे इनके,


तेरे लिए दुआए की इस क़दर, तू ना मिला ना सही, हमें इबादत करके, ख़ुदाई काम आई।





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