Tuesday, 31 May 2016

सूकून-ए-रूह




कह सके सब दिल की हसरतें, किसी एक को तो ऐसा बना कर देख,

पत्थर लगती है गर ये दुनिया, तो किसी एक को अपना आंइना बना कर तो देख।


वो महसूस करता है सब राज़ दिल के तेरे, तू देख अपना अक्स उसकी रूह में,

मुमकिन है के तेरी और उसकी हसरतें एक सी हों, तू हक़ जता कर तो देख।


शिकवे तेरे जहाँन भर से सही, लेकिन किसी  एक को  तो ज़िदगी में अपनाके देख,

दे सके तुझे सूकून--रूह, किसी एक इंसा को एक बार आज़मा कर तो देख।


लफजों के भँवर में ना उलझ, सवालों के दायरे से कर ख़ुद को रिहा,

हर नामुमकिन हो सकता है मुमकिन, तू ज़रा हिम्मत जुटा कर तो देख।


रिश्ते वो ही नहीं हुआ करते जिन में, सिर्फ़ रस्में बाँधती हैं दो वजूदो को,

बंद आँखों और दिल की धड़कनों से किसी को पहचान कर तो देख।


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