Monday, 2 October 2017

ईश्क जवाँ हुआ करता है




हर्ज क्या है उम्र दराज़ होने में, एक शग़ल है क़ुदरत का जो हौले से हुआ करता है,

हुस्न क्यों ख़ौफ़ज़दा हुआ जाता है, जब इसमें और भी ईश्क जवाँ हुआ करता है।


दिल-ए-नांदा है के, बालों की सफ़ेदी से ज़र्द-सा है, ये तो बुर्दबारी का निशा हुआ करता है,

उनकी अदाए है हर रोज़ करवट बदलती हैं, हम है के भीगे बालों के देखे से नशा हुआ करता है।


वो फ़ुरसत कहाँ थी हमें उन जवानी के दिनों में, आज पहलू में तेरे हर लम्हा नया होता है,

कह सकते हैं के अब हममें-तुममें वो बात नहीं रही, बढ़ जाए जो मुहब्बत, अमुमन यू कहाँ होता है।


जाओ कह दो ना सँवारे ख़ुद को इतना, दिल अपना फिर बेगाना हुआ करता है,

आ भी जाओ पहलू में जहाँ भी हों, वक़्त अब ना हमसे बिना आपके बसर होता है।


दिल की खुआईशो की भी कोई उम्र हुआ करती है, ये फँसाना तो दिल से बयाँ हुआ करता है,

आज कहना है वो जो किसी तब में ना कह सके, भला आंशिकी का भी ज़माना ख़त्म होता है।



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