'सही कह रहे हो... तुमने कोई कसमे- वादे थोड़े किये थे छोड़ने से पहले... भला आँखो में आँखे डाल कर हाथ पकड़ कर अगर प्यार का इज़हारकर लिया तो इसका मतलब यह थोड़ी है के, अगला ज़िन्दगी भर के लिए गले पड़ जाये' दीया ने संजीदगी से कहा.
कुछ देर इधर उधर देख कर संदीप ने अपने झेप मिटाई.
'तो क्या कहना चाहती हो तुम, मैंने तुम्हे धोखा दिया है? तुमसे प्यार मोहब्बत की बाते करके किसी और से शादी करके?' उसने खुद को संभालतेहुए दीया की आँखो में देखते हुए बोला.
'यह तुम पूछ रहे हो या बता रहे हो...' दीया ने मुस्कुरा के कहा.
'दीया प्लीज, आई मिस यू वैरी मच... तुम नहीं समझ सकती के मैंने तुमसे कितना प्यार किया और तुम्हारे यू चले जाने के बाद मैं फिर किसी कोचाह ही नहीं सका और वो तुम थी जो मुझे छोड़ कर गई थी, मैंने तुम्हे नहीं छोड़ा' संदीप ने तूनक कर कहा.
'संदीप, मुझे मिस करने का हक़ तुम्हे तब होता जब तुमने मुझे पाने के लिए कोई कोशिश की होती और तुम्हारे शादी के इनविटेशन के बाद मैं वहांकयू रूकती? तुम्हारी बारात मैं नाचने के लिए? सॉरी यार इतनी महान नहीं हुँ मैं. हाँ, मैंने एक दिन पहले तक रुक कर ज़रूर तुम्हारा इंतेज़ारकिया था और इतना जानती हुँ के जब आपके लिए कहीं जगह ना हो तो वहाँ से चले जाना चाहिए...' दीया ने सपाट लफ्ज़ो में हक़ीक़त बोल दी.
दोनों के बीच में एक लम्बी खामोशी छा गई.
'दीया अब क्या हम, अच्छे दोस्त भी नहीं बन सकते?' उसने एक उम्मीद से दीया की तरफ देखा.
'शायद नहीं, क्यों की हम दोस्त तब भी नहीं थे... वरना तब तुम उतना सब नहीं छुपाते मुझ से...' दीया ने तल्खी से कहा.
'वो मैं तुम्हे दुःख नहीं देना चाहता था इस लिए सब छुपाया, मेरी सरकमस्टान्सेस समझने की कोशिश करो... तुम्हे सब बताता तो तुम्हे तकलीफहोती, इस लिए नहीं कहा कुछ... पर अब सब ठीक हैं. अब हम शुरू से शुरू कर सकते हैं...’ संदीप ने समझाते हुए कहा.
'क्यों अब तुम्हारी बीवी साथ नहीं रहती?' दीया ने सवाल किया.
'रहती है एक बेटी भी है उससे, जॉब करती है वह और बहुत बिजी रहती है, मेरा भी टूरिंग जॉब है... कभी कहीं तो, कभी कहीं....' संदीप ने कमलफ्ज़ो में कई सालों का सफर और अपने हालात बता दिए.
'ओके... तो आपकी ज़िन्दगी में फिर से ख़ालीपन आ गया है? खैर, मेरी ज़िन्दगी बहुत बिजी हैं और अब मरने का भी वक़्त नहीं है...' दीया ने कहाऔर घड़ी देखने लगी.
'मुझे माफ नहीं करोगी दीया?' संदीप ने धीरे से पूछा.
'तुमने कुछ किया ही नहीं संदीप जो माफ़ी मांगो, ना प्यार, ना ही प्यार को पाने की कोशिश. वो मेरे जज़्बात थे और मेरा दर्द... मैं किन-किनहालातों से गुज़री हुँ तुम्हें उसका अंदाज़ा तक नहीं.... अब सब झेलने की आदत हो गई हैं और यू ही अकेले रहना अच्छा लगता है... चलती हू, मेरेफ्लाइट का टाइम हो गया’ दीया उठ कर चल दी.
'दीया... अपना नंबर तो दे दो, कभी बात करनी हो तो... ५ साल बाद मिली हो और ऐसे जा रही हो...' संदीप ने पीछे से आवाज़ लगाते हुए कहा.
‘अपना इतना ही साथ था, किस्मत में हुआ तो फिर कहीं टकरा जायगे, टेक केयर, बॉय...' और तेज़ कदमो से फ्लाइट के डिपार्चर एरिया कीतरफ चल दी.
दीया जानती थी संदीप को अब फिर उसकी ज़रूरत है, पहले की तरह... मुहब्बत के लिए नहीं बल्कि अपनी ज़िन्दगी का ख़ालीपन भरने के लिए, लेकिन इस दफा वह कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी.
No comments:
Post a Comment