Thursday, 3 January 2019

नादान




प्रणव स्कूल के ग्राउंड में अपने बड़े से मोबाइल के साथ सब लड़के लड़कियो की सेल्फी फोटोज ले रहा था और सब उसका लेटेस्ट मोबाइल देख करवओ... कूल’ कह  रहे थे.
'कितना फर्क पड़ जाता है ना इन मटेरिअलिस्टिक लक्ज़री चीज़ो से... सब स्टूडेंट्स कैसे प्रणव के आगे पीछे फिर रहे हैं'. सुनील ने धीरे से कहा.
'जानता हूँ... यह सब मेरे घर में इस्तेमाल की आम चीज़ है पर मेरे पेरेंट्स यह सब इस्तेमाल करने की बच्चों को नहीं इजाज़त नहीं देते, उन्हे लगता है इससे बच्चे बिगड़ जायेगे...' मैंने एक ठंडी हामी भरते हुए कहा.
'अरे जा यार ललित, किसी और को बेवकूफ बनाना, ऐसे तो कोई भी बोल सकता है के उसके घर में यह है-वो है, होता तो प्रणव जैसे ला कर देखता. मैं चला लडकियो के साथ ग्रुप फोटो खिचवाने...' सुनील यह बोल कर प्रणव की तरफ दौड़ गया.
मैं अपना मन मार कर क्लास की तरफ चल दिया, कौन यकीन करेगा के मेरे घर मैं - लेटेस्ट एयफोन, मर्सेडीएस कार, डी.अस्स.अल कैमरा वगैरह वगैरह सब है. पूरी दुनिया में ऊपर वाले को मैं ही मिला था इतने खड़ूस माँ- बाप देने के लिए. घर पर सब कुछ होते हुए भी मुझे बाहर किसी चीज़ को ले जा कर शो-ऑफ करने की इजाज़त नहीं थी. उनका कहना था के बस घर में ही इस्तेमाल करो, यह सब तुम्हारे इस्तेमाल के लिए है, देखावे के लिए नहीं है.
पापा फेमस बिल्डर और माँ फेमस सोशल वर्कर जिन्हे अपने फील्ड में कई अवार्ड मिल चुके थे. और उस पर भी मुझ पर दबाव की मैं अपनी पहचान खुद बनाऊ, हर वक़्त यह लेक्चर के हम सिर्फ तुम्हारे ज़रूरते पूरी करने के लिए हैं, बाकि अपने शौक किसी लायक बनकर पूरे करना.
कभी-कभी तो दम घुटने लगता था इतनी पावंदियो और उसूलो के साथ, के लानत है ऐसे पैसे और नामी माँ-बाप की औलाद होने से जो कदम-कदम पर आपको आम इंसान की तरह जीने पर मजबूर होना पड़े.
वक़्त के साथ मेरे अन्दर का गुस्सा और माँ-बाप से  नाराज़गी बढ़ती जा रही थी. पापा तो अपने काम मैं बिजी रहते पर माँ सिर्फ ख़ाली वक़्त में ही बाहर जाती अपने सोशल वर्क के लिए, वरना हमेशा घर पर ही मेरे और बहन के आगे पीछे लगी रहती.  नौकरों के  बावजूद हम दोनों के सारे काम वही करती.
उनके उसूलो के लेक्टरर्स से, अंदर  का गुस्सा दिन पर दिन  बढ़ता जा रहा था और  वह  उनका बार-बार कहना के अपने काम खुद करना शुरू करो ताकि आत्मनिर्भर हो सको, बहुत ज़हर लग रहा था. इतने पैसे और नौकरों का  किया  फायदा अगर अपने भी काम खुद करे तो? मैं तुनक कर बोलता और फिर आप किस लिए हो?
माँ मेरे बेतुके जवाब सुन कर खामोश हो जाती और ऐसे कामो मैं लग जाती जैसे सुना ही ना हो. मेरी हिम्मत दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी और अब मैं बात बे बात पर उन्हे उल्टे सीधे जवाब देने लगा था. वो शायद बहस से बचना चाहती थी या छोटी बहन के  सामने  कोई  बात नहीं  करना  चाहती थी, मैं अब उनके  टोकने  को  भी  अपनी  तेज़  आवाज़  मैं दबाने  लगा था. कभी  कभी  वह इधर  -उधर  हो कर अपनी  आँसू  पोछती   हुई  दिख  जाती तो  मुझे  बहुत  सुकून  मिलता . पापा  का  ज़रा  डर  था के  उन्हे मेरे इस  रवैये  का  पता  चला  तो  पिटाई हो सकती  है .
पर वह अपने  कामो  में बिजी  रहते  थे  और माँ शायद छुपा  जाती थी, उनसे  यह सब. मुझे  और उन्हे भी  अब यह  अहसास  हो गया  था के  मैं अब बड़ा  हो गया  हु  और अब  बेवजह  मुझे  टोका  नहीं  जा  सकता .
स्कूल  का  टूर  गोवा  जा  रहा  था और उसके  लिए  30,000 रूपए  जमा  करने  थे .
मैंने  माँ से  पूछा  तो  बोली  के अपने  पापा  से शाम  को  बात करना,  मेरे पास  नहीं  है  इतना  कैश . बस  मैं फट  पड़ा  के  आप  झूट  बोल  रही हो, अपने  बेकार  के  सोशलवर्क  में इतना  लेंन -देंन  करती  हो और मैंने  ज़रा- सा  अमाउंट  मांगा  तो  पापा  से बात करने  को  बोल  रही हो. मैं और भी  बहुत  कुछ  सुनना  चाहता  था और वो चुपचाप  वहां  से उठकर चली  गई.
आज  सोच  लिया  के  पापा  ने  भी  ज़रा सी भी  ना-नुकर  की  तो  उनको  भी  बता  देना  है  के  मैं 16 साल  के  हो गया  हु  अब कोई  बच्चा  नहीं  रहा  जिसे  हर  काम  पूछ -पूछ  कर करने  पड़े.
शाम का वो  वक़्त भी गया जब पापा घर वापिस आते थे. डिनर टेबल पर जब मैंने पापा सी बात छेड़ी तो वो भड़क गये के इतने पैसे क्या झाड़ पर उगते हैं जो यूँ ही दे दिए जाये, इन स्कूल वालो ने तो  बिसनेस बना दिया है.
'बेटा, इन सब में वक़्त और पैसा ख़राब करने की ज़रूरत नहीं है... अपने पढ़ाई पर धयान दो' उन्होंने सख्त अंदाज़ में कहा.
'पर पापा सब दोस्त जा रहे हैं, उनके पेरेंट्स भी तो दे रहे हैं पैसे..' मैंने चिढ़ कर कहा.
'देने दो उन्हे ... हमारे पास फ़िज़ूल पैसे नहीं हैं..' उन्होंने नाराज़ हो कर कहा.
'आप लोग सिर्फ अपना सोचते हैं मेरे ख़ुशी के कोई ख्याल नहीं, भगवन ना करे आप जैसे माँ-बाप किसी और को मिलें...' मैं खाने की प्लेट पीछे धकेल कर उठ खड़ा हुआ.
और तब तक पापा का  एक ज़ोरदार थपड़ मेरे गाल पर रसीद हो चुका था. मैं तिलमिला कर अपने कमरे में गया और ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर दिया, गुस्से से सर फटा जा रहा था और पता नहीं क्या- क्या बोलता रहा.
 'दरवाज़ा खोलो... सुना नहीं तुमने... दरवाज़ा खोलो...' पापा की गुस्से से आवाज़ आई.
'जाने दीजिये... बच्चा है.. ठीक हो जायेगा... आप खामखाह इतना नाराज़ हो रहे हैं... चलिए रूम मैं चलिए... मैं बात करती हु उससे. माँ शायद उन्हे समझाती हुई वहां से ले गई, बहन  अपने रूम में पहले ही सहम के जा चुकी थी.
मुझे अब माँ के इंतज़ार था के वह रात के किसी पहर मैं आकर मुझ से ज़रूर बात करेंगी और सोच लिया था तब उन्हे क्या-क्या सुनाना है.
पल-पल करके आधी रात गुज़र गई, किसी ने कोई सुध नहीं ली. कुछ शैतानी ख्याल मन में जाग रहे थे, मैं कमरे से निकला और सीधे मम्मी-पापा के बैडरूम में पॅहुचा, वो बेखबर सो रहे थे. मुझे पता था वो  पैसे कहाँ रखते थे, मैंने चुपके से अलमारी खोली और नोटों की जितने गड्डियां उठा सकता था, उठा कर अपने कमरे मैं आकर अपने बैग में रख ली.
सुबह को जल्दी से तैयार हो कर स्कूल के लिए निकल गया. अब समझ नहीं रहा था के क्या करू? सेकंड पीरियड मैं जब टीचर ने गोवा के ट्रिप के लिए पैसे मांगे तो मैंने उनमें से निकल कर जमा कर दिए. वापिस अपने जगह पॅहुचा तो विक्की फटी आखो से मेरे बैग की तरफ देख रहा था.
'ललित... इतने पैसे कैसे लाया है बैग में?' उसने दबी आवाज़ मैं पूछा.
'वो...वो... पापा का कुछ काम था... स्कूल के बाद कहीं जाना है...' मैंने सकपकाते हुए कहा.
'तूने कहीं जाकर चोरी-वोरी तो नहीं की ना?' उसने शक की निगाह डालते हुए कहा.
' अरे विक्की पागल है क्या... यह सब मेरा पैसा है.. तूने स्काईहैइ  बिल्डर का नाम नहीं सुना? मेरे पापा हैं वो... मैंने शान भागारते हुए कहा.
'सच में? उसने चौक कर कहा.
'और क्या...!' अब मैं और इधर-उधर की सुनाने लगा.
'क्या यार कभी तुझे ढंग का मोबाइल, घडी या कार इस्तेमाल करते नहीं देखा था ना, इसलिए अंदाज़ा नहीं था तेरे स्टेटस का. खैर आज इतना सब पता चला और पैसा भी लाया है, तो आज अपनी पार्टी बनती है' उसने कहा.
'हां ज़रूर-ज़रूर क्यों नहीं, चलो स्कूल की छुट्टी के बाद जहाँ भी चलना है...' मैंने शान से कहा.
विक्की मेरा दोस्त नहीं था पर क्लास मैं साथ पढने की वजह से बातचीत होती थी, आज उसको पूरी तरह इम्प्रेस करके सीना चौड़ा हो गया था, सोचा कहीं घूमेंगे, फिर के मूवी वगैरह देखने साथ चले जायगे और खा पी लेंगे तो उस पर, मेरी धाक जम जायेगी.
बस छुट्टी के बाद मेट्रो पकड़ी और मॉल की तरफ निकल लिए... आज मेरा भी जल्दी घर जाने का मन  नहीं था. विक्की की शुमारी क्लास के बिगड़ैल लड़को में होती थी पर मुझे क्या... मुझे तो बस आज सब बंदिशों से दूर एन्जॉय करना था.
रास्ते मैं विक्की ने बताया के घूमने के वक़्त,उसके सीनियर फ्रेंड्स और हमे ज्वाइन करेंगे उसने कॉल कर दिया है उन्हे भी, मैंने ठीक है कह दिया, के जितने लोग उतनी मस्ती .
मॉल में विक्की के बाकि दोस्त भी मिल गये. पहले मूवी, फिर गेम्स, फिर पिज़्ज़ा... हर जगह आगे बढ़-बढ़ कर मैं ही पेमेंट कर रहा था और घूमते-फेरते कैसे शाम हो गयी पता ही नहीं चला.
'ललित यार एक बात बता.. कितने पैसे हैं यह तेरे पास... कहीं कम तो नहीं पड़ जायेगे ना' विक्की के साथी राहुल ने पूछा.
'कम क्यों पड़ेंगे मेरा पॉकेट मनी है यह सब... मेरे पेरेंट्स के पास बहुत पैसा है और ले लूंगा उनसे.. आप बताओ और कहीं चलना है क्या?' मैंने बड़बोलेपन से कहा.
'हां अभी पार्टी खत्म थोड़ी हुई है... अब ज़रा आउटर मैं मेरा फार्म हाउस है, वहां चलते हैं' राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा.
'हां ज़रूर' बाकि सबने भी हामी भरी. मैंने घडी देखीं शाम के सात बज रहे थे और अँधेरा हो चला था. घर का धयान आया के स्कूल से कभी घंटे भर मैं नहीं लौटता था तो माँ कितना परेशान हो जाती थी, अब तक तो पापा के साथ मिल के सब दोस्तों और रिश्तेदारों के यहाँ कॉल कर दिए होंगे. फिर लगा आज ज़रा परेशान होने दो, मेरी वैल्यू पता चलेगी उन्हे, कल तो हाथ तक उठा दिया था पापा ने... होने दो परेशान होते हैं तो.
एक साथी ने टैक्सी रुकवाई और हम उस में बैठ गए, पूरे रास्ते विक्की और उसके साथी मेरी घर और पापा के बिसनेस के बारे में बात करते रहे और मैं बड़ा-चढ़ा  कर बताता  रहा, घंटे भर बाद उनकी बताई हुई  जगह पर टैक्सी पहुंच गईऔर हम सब उतर गये.
टैक्सी चली गई, मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ाई अँधेरा, खेत और सूना रास्ता दिखा और उन चारो के चेहरे पर बदले हुए तेवर. मुझे कुछ सही नहीं लगा.
'यह कहाँ ले आये आप लोग, यहाँ तो कोई फार्म हाउस नहीं देख रहा... मुझे नहीं जाना कहीं... चलो वापिस चलते हैं...' मैंने तेश मैं कहा.
'नहीं दिखा तो, अब दिख जायेगा'... उन मैं से एक ने कहा और ज़ोर से मेरी सर मैं कुछ मारा और सब कुछ धुंधला हो गया.
मुझे होश आया तो मेरे हाथ पैर और मुँह बंधे हुए थे, चारो तरफ  खेत और अँधेरा था, मैंने अँधेरे में देखने की कोशिश की, वह चारो कोई ख़ुफ़िया प्लान डिसकस कर रहे थे.
'क्या बोलते हो... अब क्या करना है इस मुसीबत का..'
'सिर्फ २५, 455 हज़ार निकले हैं, इसके बैग से और एक एयफोन '
'यह दोनों चीज़े मेरी हुई... आखिर शिकार मैं घेर कर लाया था... बाकि तुम लोगो को इसके बाप से जो वसूल करना है, कर लो'
'अच्छा तुम किनारा नहीं कर सकते... पूरे प्लान में साथ रहना होगा...'
'क्या प्लान... पहले तो सोचो इसे मरना कैसे है... ये यहाँ से निकला तो सब मारे जायेगे'
'पहले कॉल तो करो इस के बाप को...'
' नया सिम लाये हो ना तुम?'
उन सब की बाते सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये, आज समझ आ गया था के आखिर क्यों मेरे माँ-बाप मुझे देखावे से दूर, सिर्फ और सिर्फ उसूलो पर चलना चाहते थे. मेरी सामने मेरी मौत खड़ी थी और मैं नादान फिर समझ नहीं पा रहा था के अब क्या करू...



2 comments:

  1. Waooo wonderful lesson for teenagers...I m proud of you 😊

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