Monday, 21 January 2019

के मेरी सुनती नही हो....



सुन... 
कहकर वो तेरा ढेर सारी नसीहते देना,
वो बात-बे-बात पर लड़ना और बिगड़ना,
वो समझाना मुझे दुनियाभर की दुनियादारी,
वो बताना मजबूरी, वो बातों की समझदारी...

सुन...
कहकर कहना, के तू मेरी कभी भी सुनती नहीं है,
चलाना मर्ज़ी अपनी, कहकर के मेरी चलती नहीं है,
वो करना बातें आसमानों की, वो वादें तारों वाले,
वो तारिफें गुलाबों सी, वो ज़िदगी भर के वादे...

सुन...
कहकर शुरू हो जाना और सुनाते ही रहना,
मैं भूल जाऊ अपने शिकवे और जो भी था कहना,
तुम्हारा झल्लाके कहना के पागल हो क्या तुम,
और हमेशा मेरा हँस कर, ये भी तसलीम कर लेना...

सुन...
कहकर तुम अपनी मुश्किलें आसान करते हो,
लफ़जों से जज़्बातों को अपने, आज़ाद करते हो,
चलाते हो हुकूम, हक जताकर बड़ी ही बेबाकी से,
सलतनत पर मेरे दिल की, तुम ख़ुद राज करते हो...

सुन...
कहकर महज़ एक लफ़ज़ में बाँध लेना मुझे,
रेशम की डोरी जैसी बातों में मेरा उलझ जाना हर दफ़े,
वो मेरा मान लेना, तेरी हर बात को हर बार ही,
सुनाते जाना अपनी और कहना के मेरी सुनती नही हो....


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