शोर है मेरे अन्दर जो तूफ़ा मचायें है, बेचैनेयाँ हैं जो सुकून लेने नहीं देतीं,
ये कौन हैं जो रहबर बन के ख़ून करते हैं, ये कौन हैं जो इतने नफ़रतें करते हैं।
रंगी हैं सड़के मासूमों के ख़ून से, हवाओं में चीख़े गूंजती हैं, धुआँ उठता है जलतीं इबादतगाहो से,
के घर भी ख़ाक हो गए हैं, रौनके गुम हैं मेरे शहर की, हर तरफ क़बरस्तान लगता है।
बिलखतीं माँ है कहीं, तो कहीं यतीम तड़पता है, हर इंसान अब बेएतबार लगता है,
ख़ून देखता है हर आंख में, ऐ ख़ुदा ये मेरी सरज़मीं को क्या हो गया है।
बिखर क्यों गया वो क़ाफ़िला जो साथ चला था, साथ मिलकर मोहब्बतों की मंज़िल,
क्यों पड़ौसी जो दोस्त हुआ करता था, हो गया मेरी क़ातिलों की भीड़ में शामिल।
ये आग किसने लगाई है दरमियाँ, क्यूँ कर आ गयीं, हम सब के ये बीच में दूरियाँ,
ये तेरा घर ये मेरा घर एक गलीं में हुआ करते थे, कभी हम मिल के रहा करते थे।
आज तक मेरी जो पहचान तेरे दोस्त होने की थी, अब तू मज़हाब जुदा बता रहा है,
घर सजाया करते थे एक दूसरे के त्योहार पर, आज तू दंगायो को मेरा घर देखा रहा है।
मायूस हूँ मैं बहुत, पर नाउम्मीद हरगिज़ नहीं, मालूम है के नफ़रते जीत सकती कभी नहीं,
इंसान हैं ढूढ़ लेंगे फिर वही हम मोहब्बतों के चिराग़, जो आज भी नफरतो की अँधियाँ बूझा न सकी।
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