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Saturday, 11 April 2020

ढूढ़ लेंगे फिर वही हम मोहब्बतों के चिराग़



 
शोर है मेरे अन्दर जो तूफ़ा मचायें हैबेचैनेयाँ हैं जो सुकून लेने नहीं देतीं,
ये कौन हैं जो रहबर बन के ख़ून करते हैंये कौन हैं जो इतने नफ़रतें करते हैं।
 
रंगी हैं सड़के मासूमों के ख़ून सेहवाओं में चीख़े गूंजती हैंधुआँ उठता है जलतीं इबादतगाहो से,
के घर भी ख़ाक हो गए हैंरौनके गुम हैं मेरे शहर कीहर तरफ क़बरस्तान लगता है।
 
बिलखतीं माँ है कहींतो कहीं यतीम तड़पता हैहर इंसान अब बेएतबार लगता है,
ख़ून देखता है हर आंख में ख़ुदा ये मेरी सरज़मीं को क्या हो गया है।
 
बिखर क्यों गया वो क़ाफ़िला जो साथ चला थासाथ मिलकर मोहब्बतों की मंज़िल,
क्यों पड़ौसी जो दोस्त हुआ करता था, हो गया मेरी क़ातिलों की भीड़ में शामिल।
 
ये आग किसने लगाई है दरमियाँक्यूँ कर  गयींहम सब के ये बीच में दूरियाँ,
ये तेरा घर ये मेरा घर एक गलीं में हुआ करते थेकभी हम मिल के रहा करते थे।
 
आज तक मेरी जो पहचान तेरे दोस्त होने की थीअब तू मज़हाब जुदा बता रहा है,
घर सजाया करते थे एक दूसरे के त्योहार परआज तू दंगायो को मेरा घर देखा रहा है।
 
मायूस हूँ मैं बहुतपर नाउम्मीद हरगिज़ नहींमालूम है के नफ़रते जीत सकती कभी नहीं,
इंसान हैं ढूढ़ लेंगे फिर वही हम मोहब्बतों के चिराग़जो आज भी नफरतो की अँधियाँ बूझा  सकी।