वो जो जज़्बातों को ना समझे, दिलों के इकरार ना माने,
मेरे हर इंतेज़ार से बेख़बर, वो जो मसरुफ है इस क़दर।
वो जो तोले दिमाग़ से ही, वो ना जाने हाल-ए-दिल मेरा कभी,
तवाज़ो को कर दे नज़रंदाज़, वो जो मसरुफ है इस क़दर।
वो मेरा आहटों पर चौकना, वो हर मोड़ पर मुड़ कर देखना,
उससे ही ढूँढे मेरी ये नज़र, वो जो मसरुफ है इस क़दर।
तन्हाईयाँ गूँजती है, इस ज़ेहन से अब उम्मीदें भी हुईं बेअसर,
दुश्मन-ए-जान बन गया ये सफ़र, वो जो मसरुफ है इस क़दर।
मैं मजबूर हूँ दिल से और उसकी ज़माने-भर की मजबूरियाँ,
मोहब्बत की वो जो ना करे क़दर, वो जो मसरुफ है इस क़दर।