Sunday, 30 October 2022

क्यों नहीं?

 ©इरम फातिमा 'आशी


वो दर्द, वो आहें, वो तड़प, वो जद्दोजहद ज़िन्दगी के लिए,

वो चला गया दुनिया से तो, फिर मुझ में से जाता क्यों नहीं?

 

सदाए दी उसको, बहुत पुकारा भी, इबादते की और मन्नते भी,

मांगा उसे सजदों में बेपनाह, फिर दुआये मेरी क़ुबूल हुई क्यों नहीं?

 

पल-पल रिस्ता है ज़ख़्म-सा, नम आंखे हैं, ग़म है के ठहर गया मुझ में,

बीत गया जो छीन के मुझसे सब मेरा, फिर वो लम्हा गुज़रा क्यों नहीं?

 

मुझ में वो जीता है या मर गया मैं साथ उसके, गर मैं उसका हिस्सा हूँ,

वो दफ़न होकर सुपुर्द--ख़ाक हो गया, फिर मैं अब तक मरा क्यों नहीं?

 

कहते हैं, जिसका था उसने ले लिया उसको, सब्र करो मरने पर उसके,

करके विदा उसको ख़ुद से, मैं ज़िंदा रह तो गया, फिर जीया क्यों नहीं?



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