ये भीड़ मे चलते हुए भटकते से लोग,
सुबह से शाम और रात में गुम लोग,
दर्द मे डूबे, अंधेरे में घिरे
लापता लोग,
गर्ध मे अटे, खून के प्यासे
ये क़ातिल बने लोग।
भीड़ है, शोर है, चीख़ है, पुकार है,
गिद्ध से बने लोग, मासूम पर चढ़े
लोग,
कोई पीटता कोई काटता, दरिंदे बने लोग,
बेबस, बेचारे पर कहकहा
लगाते बर्बर बने लोग।
किस आग मे ये जल रहे, किस नफ़रत मे
पल रहे,
बरगलाये, बहके, भटके हुए, जानवर से ये लोग,
इंसान है सहमा हुआ, इंसानियत है हैरान
यू,
नाउम्मीद, लाचार, बेबस देखता हुआ, वहशी बने लोग!
अब मुहब्बत का कदम बढ़ाना होगा,
इंसानियत को हम इंसानों को ही बचाना होगा,
मज़हब नहीं सिखाता यू आपस में बैर रखना
ये मंत्र फिर से दोहराना होगा, नफ़रतों को यू
हराना होगा!
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