Monday, 29 December 2025

क्यों रोज़ यु हार रहे?

ये रंगो पर बटवारा क्यों, इन पर ये बहस कैसी?

ये फल, फूल, चाँद और तारो में बाटता हुआ इंसान कैसे?

ये कब तिरंगे का रंग दो अलग-अलग बट गये,

ये कब सफेद शांति का रंग, नज़रअंदाज़ हो गया?

 

ये खाने कब मुद्दा बने और अलादा हुए हमारे?

हम तो हमख़्याल, हमनिवाला हुआ करते थे,

एक दस्तरख़ान और थाल में बाट कर खाते थे,

हम खाने का नाम लेकर ख़ून के प्यासे कैसे हो गये?

 

एक दूसरे के जशन कब से पराये हुए हमारे?

ईद की सेवाइयो और ईडी पर सबका हक़ होता था,

होली, दिवाली, दुर्गा सब संग मनाया करते थे,

अब ये तेरे और ये मेरे त्योहार कैसे अलैदा हो गये।

 

ये वक़्त का तक़ाज़ा है या मोहब्बतें कम हो गयीं?

या नफरतों की जंग में इंसानियत कहीं खो गयी?

या हमारी एकता में हार किसी की, तो नफ़रते फैला रहे,

भाईचारा ख़तम हो गया, कटपुतली बने क्यों रोज़ यु हार रहे?

 

 

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