Sunday, 17 May 2015

मुझे तन्हा ही मुहब्बत में जलने दे

मेरे जज़्बात मुझ तक रहने दे, एक दरया है, मुझे इन लहरों में बहने दे,

एक आग है, तपिश है जला देने वाली, मुझे अकेले ही मुहब्बत में जलने दे।


ये समझदारी की बातें नही जो तुम समझ सको, हमे यू ही नादान-नासमझ रहने दे,

कोई पागल कहता है तो कह ले, हमे इस हाल में ही अब ये ज़माना रहने दे।


ये दिल है मजबूर अपने ही हाथो, दुनियादारी की बातें हमसे अब रहने दे,

जिसे सूकून तेरे ख़यालों में ही मिलता हो, उसे इबादत के तरीके रहने दे।


तूने जाने को कह दिया और हम चल दिये, तेरी ख़ुशी के लिए, हमे तंहा ही जीने दे,

ज़िंदगी बड़ी बेज़ार होकर गुज़ारी हमने, अब जन्नत के बदले तुझे माँग लेने दे।




Monday, 11 May 2015

A hidden creature


A lonesome silence, haunted in my lonely soul,
Screams loud to break glass of my zone, my persona,
A hidden creature comes out of me, my essence,
My existence splits in two parts, anonymous to planet.

Unheard, unfamiliar, unknown stranger for all habitats,
It is hideous, impulsive, weeps in dark and sheds tears,
Complains to God, ‘Why me?’ twinge and unrestrained,
It is pessimistic, demanding, grasping and self-centered.

A crowd is assembling for phony customs illustration,
Go back, my dark shade, gloominess, my desolation,
My anguish, agony is not to demonstrate and to exhibit,
I veiled my ache under makeup face and laughed loud.





Sunday, 3 May 2015

रूठने का मज़ा

कुछ कसक सी उधर भी उठी ज़रूर होगी, यू सोज़--दिल खमाखा तो नहीं होता,

वो भी बेक़रार, बेचैन ज़रूर होगे, ये दिल उनसे ख़फ़ा और बेज़ार यू नहीं होता।


वो अल्फ़ाज़ ही है जो दिखा देते हैं जन्नत, उनका गुफ़्तगू में वजूद, बेवजह नहीं होता,

अब ये उस पर है के मुहब्बत बरसाये या नशतर, हमे दर्द अब ज्यादा नही होता।


कुछ फितरतन वो लापरवाह है ज़माने भर से, मुझ ही से सिर्फ़ उलझना नही होता,

मेरा शिकवा करना नामुमकिन-सा है, गर उसने नाराज़गी का, हक़ ना दिया होता।


राते ख़ूबसूरत और दिलकश ना हुआ करती अगर उनमें चाँद का चमकना ना होता,

दिल--ग़मज़दा,रूठने का मज़ा ख़ाक हो जाता गर उसमें, मनाना नही होता।