Wednesday, 31 May 2023

शतरंज

वही अँधेरा और वही रात, फिर इन्तिज़ार में मेरे,

शाम के उस कोने में छिपे बैठे मिले,

जहाँ से दिन का सफ़र मुकम्मल होता है,

मैंने सहम के अँधेरे की तरफ देखा तो,

रात, बेबाकी से मुस्कुरा दी,

फिर वही रोज़ की तरफ बिसात बिछाई,

वही शह और मात का सिलसिला शुरू हुआ,

उसने ऊंट, हाथी, घोड़े, रानी सब निकल लिए,

मैं हमेशा की तरह अपने पियादे लिए बैठा रहा,

रात, मेरे साथ शतरंज खेलती रही, छलती रही,

मैं हैरान परेशान उसकी चाले, देखता रहा,

कभी गुज़रे वक़्त की तरफ धकेल दिया जाता,

कभी आने वाले वक़्त की सोच के घबराता रहता,

कभी रिश्ते डराते, तो कभी हालात,

कभी किसी की कही बात को,

अलग-अलग तरीके से सोचकर उलझता,

रात, शतरंज की बिसात पर फिर जीत गयी।

मैं मायूस होकर मातम मनाता इस से पहले,

सूरज की चमक ने मुझे रोशनी दिखाई,

मैं सब समेट कर नये दिन की शुरुआत को,

नयी उम्मीद के साथ चल दिया,

रात झल्लाकर फिर से लौट गयी!


Sunday, 26 February 2023

विध्वंस

 ©इरम फातिमा 'आशी'

 

द्वेष है, क्रोध है, जवालामुखी रोष का है,

मस्तिष्क अशांत है, मन में अग्नि का प्रशांत है,

निहत्था हुआ है असमर्थता, ये कौन बुद्धिभ्रंश है,

कौन है लहू से लतपत पड़ा, ये कौन अग्नि के हवाले कर दिया,

मानवता शर्मसार हुई, प्रश्नों से भरा, कष्टप्रद संसार है,

प्रकृति विस्मित है, ये कौन है जो मौत के घाट उतर दिया,

खून के छींटे लिए खड़ा, ये कौन है जो कातिलों के साथ है,

एक माता के नाम पर, किसी के पुत्र का प्राण हर लिए,

ममता की नेत्रों में अश्रु हैं, पुत्र किसी का लहुलहान है,

पीड़ा है जो थमी नहीं, दुःख की सीमा अपरम्पार है,

केवल एक व्यक्ति नहीं, दुष्ट ने मारा, सारा परिवार है,

ये शक्ति का है प्रर्दशन, या मानवता का विध्वंस है?






Monday, 20 February 2023

दस्तक

दस्तक दी है किसने, ये मेरे सूने दर पर आकर,

ये कौन है, जो सेहरा में भटकना चाहता है।

 

कैसे कह दू आनेवाले को, के कोई नहीं है यहाँ,

मुझ में, मैं ना सही, एक सन्नाटा-सा तो चलता है।

 

ख़ाली-घर, दरों-दिवार, खिड़की, ये रोशनदान,

तन्हा हैं साथ मेरे, पर इंतज़ार इनमें कोई करता है। 

 

एक घड़ी है दिवार पर, जो दो पल भी ना रुकी,

वक़्त है जो मेरी तरह, मुझ में थमा सा रहता है।

 

अंधेरो में मैं भटका किया, पर रोशन रहा हमेशा,

उसकी यादों में, इस दिल दीया-सा जला करता है। 



Sunday, 8 January 2023

अहसास

तन्हाई में तंहा नहीं होने देताख़ामोशी में करता है एक शोर सा,

कोई आहट नहीं है किसी कीफिर कौन है ये मेरे आसपास।


सुबहाओ शाम मुझ में ढलता हैहर लम्हे साथ चलता है,

जिस्म नहींसाँसे नहींनिगाहें नहींपर अहसास है कोई आसपास।


गर देखना चाहु तो देखाई नहीं देताकहता है जो वो सुनाई नहीं देता,

अजब से एहसासों और अनसुने लफ़्ज़ों का कारवाँ है मेरे आसपास।


वो कौन है जो कैद नहीं करता और ना रिहा ही करता है कभी

आज़ाद हो कर भी आज़ाद नहींकोई दायरा सा है मेरे आसपास।


ये जज़्बात हैं मेरे ही कुछ या वहम है जो मुझ में पलता है,

आख़िर क्यों लगता है केएक साया सा रवा है मेरे आसपास।