Tuesday, 15 December 2015

मेरा हिस्सा




आज कुछ लम्हे उस पर ख़र्च कर आया, वो मेरा हिस्सा था कह दिया, हिसाब 

करने जो बैठी ज़िंदगी, 

क्या खोया क्या पाया इस सफ़र में, ये बाकि सोचे, अब के मै ख़ुद के लिए, जी

आया अपनी ये ज़िंदगी।


कुछ जमाख़ोरी की मैंने ज़माने से छुप कर, दिल के तहख़ाने में दबाई थी

उस की तस्वीर और यादें,

आज उस से मिल कर सब जज़्बात बेपरदा कर दिए, कह आया हाल-ए-दिल और दिल

की लगी।


बचपन बेपरवाही में गुज़रा, जवानी जम्मेदारियो की नज़र होकर रह गई, हशीये पर रहे जज़्बात मेरे,

ख़ुदा मेरे आसपास ख़फा-सा रहा मुझ से और मै बुतग़ाहो में तलाश

करके करता रहा बंदगी।


तशनगी ने उसकी कभी सूकून ना लेने दिया, बेचैनियों में कटा तो कभी तलब

में उसकी, ये सफ़र,

वो जो मेरा था, मेरे लिए रहा बेताब उम्र भर, और मै ग़ैरों में तसकीम करता रहा उसकी
हिस्सेदारी।


हसरत सी रह जाती अधुरी ख़ुद के लिए जीने की, ग़र ना जाता मिलकर उससे

ख़ुद को मुक्कमल करने,

मेरे अाईने में अक्स उस महबूब का ही दिखा करता था, कैसे बहलाता रोज़ खुआईशए
वो ज़िद्दी।


बेतरतीबी से टुकड़ों में बिखरा सा वजूद मेरा, तमाशाई-सा लगता है ये बनावटी 

ये सारा जहाँ,

वो लम्हे जो साथ गुज़रे उसके तराश के प्यार से, मैंने ख़ुद को तलाश लिया 

मुहब्बत में उसकी।




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