यादों में गुम हो जाऊँ कहीं मैं और कोई ढूँढ ना पाए मुझे,
ऐसे में हौले से तुम मेरे रूबरू हो जाओ तो क्या बात है।
अपनी ज़ुल्फ़ों की तारिफ़ में सुने हैं क़सीदे बहुत मैंने,
कभी तुम उलझी ज़ुल्फ़ें सुलझा जाओ तो कोई बात है।
कहते हैं के आतिश ए ईश्क होती है दोनों जगह बराबर,
आकर कभी हमें तड़प समझा जाओ तो कोई बात हैं।
हसरतें यार कुछ इस तरह रही अधुरी, दोनो ही रहे मशगूल,
अपनी ज़िंदगी से मेरा हिस्सा, मुझे दे जाओ तो कोई बात है।
कब सूरज मिल सका है, चाँद से दिन के उजाले में,
कभी अंधेरे में दिल का दीया जला जाओ तो कोई बात है।
सुना है ऐ ख़ुदा, तू हमेशा माँगी हुई हर दुआ क़ुबूल करता है,
मेरे रहबर बन के वो शक्स, मुझे लौटा जाओ तो क्या बात है।
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