Thursday, 12 November 2015

तू मेरे लिए है





एक चेहरा ज़हन में आया, जिसकी कभी जुस्तजू की थी,

कुछ ख़ास कहने को नहीं था, सो कहा ही नहीं,

गिले शिकवे भी नहीं करने थे, तुमसे सो किए ही नहीं,

हमारी राहें थी जुदा, रिश्ता भी कुछ बेनाम-सा था।


बस देखना चाहती थी, मिलकर उस शक्स को,

जो मेरे दिल में रहकर रूह से बावसता है मेरी,

मेरी धड़कने मुझ में उसी का नाम क्यों लेती हैं,

साँसें आज भी मेरी मुझ में, उस ही का दम भरती हैं।


वो प्यार जो कुछ दे गया वजूद को मेरे और,

ले भी गया मकसद ही मेरे जीने और मरने का,

इस क़ायनात का हुँ हिस्सा मैं, साँसें भी हैं रवाँ-सी,

वो चेहरा क्या आज भी देता है, तेरा ही ग़ुमाँ सा।


हाँ तुम आज भी वही हो, मुहब्बत की सौग़ात लिए,

पर दुनिया की रस्मों से बेबस और मजबूर।

यू तंहाई में बहुत सी दिलकश बातें हैं तुम्हारी,

मिलने बिछडने की वजहें और शिकवे-शिकायतें।


फिर चल देना अपनी अलग-अलग रहगुज़र पर,

फिर छोड़ देना, मुझे तंहा, अपनी यादों के साथ,

फिर कश्मकश में हुँ आज, क्या ईश्क सिर्फ़, 

तंहा और छुप कर किसी जुर्म की तरह होता है?


रिवायते कर जाती है इस क़दर लाचार ज़िंदगियों को,

तेरी याद की बेख़ुदी में फिर दिल बेचैन सा है,

सरग़ोशी में लबों से तेरा नाम फिसला-सा जाता है,

तेरी रुसवाई ना हो, बहुत एहतियात की इसके लिए।


बेदम हो कर हयात यू अब हाथ से फिसली-सी जाती है,

अब इसे तेरी उल्फ़त का इम्तिहान समझ या मेरी खुआईश,

ये सिलसिला मेरी साँसों के साथ ख़त्म होने से पहले ही,

कह दे थाम के हाथ मेरा, तू मेरे लिए है, सिर्फ़ मेरे लिए हैं।






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