Sunday, 18 December 2016

दाग़-ए-दिल





ख़ूब सिला देते है हमारी वफाओ का, हर मोड़ पे वो दग़ा देते है,
मर्ज़ी से निभाते है साथ और जब चाहे तंहा, छोड़ दिया करते हैं।


रिश्ता है ये रूहानी-सा, कोई उन्हे मुहबबत का वास्ता दे भी तो कैसे,
दुखा के दिल मेरा हरदम, वो मेरे सब्र का इम्तिहान लिया करते है।


उनसे वफ़ाए निभाकर भी देख लीं, अब किसी का भी ऐतबार नहीं रहा,
ये ज़रूरी नहीं के राह--सफ़र, हमसफ़र-सा साथ दिया करते हैं।


मुहब्बत की कसक दफन करके दिल में, अधुरी कहानी लिए भटकते हैं, 
तुम वो कोहिनूर बन गए, जिसे हम हसरत से देख लिया करते हैं।


समंदर की मौजो से कह दो, ना दिया करे किनारों पर इस क़दर दस्तक,
हसरतें फ़ना कर दी सारी, अब हम औरों के लिये जीया करते हैं।


हर दर्द पर लगाके पेबंद मुस्कुराहट का, दास्ताँने दर्द छुपाई कुछ ऐसे, 
हर कोई मुझे ख़ुश समझा, इस तरह हम दाग़--दिल ढाप लिया करते है।


No comments:

Post a Comment