Sunday, 21 January 2018

के अब तो चली आओ


दिल की सरहद लाँगती, वो अल्हड़-सी खुआईशे,
कहती हैं, नासाज़ तबीयत है मेरी, के चली आओ।

चली आओ के बहुत दिन हुए सराहने बैठ कर मेरे,
तुम्हारी उँगलियो से, मेरे घुंघराले बाल सहलाए हुए।

तुम्हे छूने के अहसास धुँधले से हो चले हैं, ज़हन में,
दिन हो चले बहुत, तेरे पहलू में तेरी ख़ुशबू लिए हुए।

मेरे बाज़ू पर सर रखकर, सीने से लगकर मुस्कुराना,
तुम्हारा वो, मेरे बेक़ाबू से दिल की, धड़कने सुने हुए।

मेरा वो बरबस कहना के, कुछ कहना है तो कहो,
और तुम्हारा सादगी से, इंकार में सर वो हिलाते हुए।

मेरा वो उँगलियों से बदन पर तेरे, नाम तेरा ही लिखना,
और तेरा वो समझ कर भी, नासमझी में माना किए हुए।

वो तेरा देखना मुझे एकटक, के यकीं कर ले साथ होने का,
वो मेरा मुस्कुरा के, तुम मेरी हो ना? बार-बार पूछे हुए।

मेरे भी अरमान हैं के आज मेरे कुछ नाजोंदाज़ उठाओ,
के नासाज़ तबीयत है मेरी के अब तो चली आओ....




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