यू तो ज़िदगी बादस्तूर जारी है, पर शामोसुबह
ज़रा जुदा सी हैं,
तेरे कहने से कुछ, बस एक दिल टूटा
है और कोई बात नहीं।
तू दूर कहीं अपनी ही दुनिया के
खुशनुमाखयालो में है, गुमशुदा,
ज़ख़्मी हैं हम तेरे तरकश के लफज़ो
से और कोई बात नहीं।
तू मजबूर अपनी फितरत से, हम मजबूर हैं
अपनी मुहब्बत से,
तुम्हे ख़ास बनाया मेरे अहसासो ने, नाकद्र हो तुम तो
कोई बात नहीं।
कुछ वक़त बेचैनियाँ होंगी, फिर सम्भाल
लेंगें हम ख़ुद को,
आदत है तेरी, तो परेशाँ होगे
बिना तेरे और कोई बात नही।
चलो ये भरम टूटा के हम तुझ में रहा
करते हैं, अहसास बनकर,
तेरे दिल के आशियॉ में अगर मेरे
लिए जगह नहीं, तो कोई बात नहीं।
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