ज़िंदगी है इम्तहान, कभी धूप की तपिश, कभी बर्फ़ सी जमी हुई,
मौसम बदलता रहता है, जब इंसान बदले रंग, तू डर नहीं, तू डट वही।
डरावनी ग़र हो कभी ज़िंदगी, तो मौत का ख़ौफ़, तू करना ना कभी,
बदल जाने दे तू रंग-ढंग, पहचान ले चेहरे सभी, तू डर नहीं, तू डट वही।
ज़िंदगी ग़र जंग है तो निकाल ले तलवार तू, लड़ जा गर तुझ पर कोई वार हो,
फूलों की ख़ुआईश हो या दर्द की आज़माईंश हो, तू डर नहीं, तू डट वही।
हाथ ना फ़ैला, ना भीख माँग ख़ुशीयों की, जो तेरा हक़ है छीन ले तू,
तू तिनके उठा, घोंसला बना, तू होसला जुटा, तू डर नहीं तू डट वही।
वक़्त तेरा ना तो क्या हुआ, कोई अपना साथ ना दे, तो रहने दे,
तू कमज़ोर नहीं, तू लाचार नहीं, तूफ़ा है तू, डर नहीं, तू डट वही।
ग़र हर हाथ में कोई तीर है, हर नज़र शमशीर है, तेरा ना कोई साथी ना पीर है,
ख़ंजर उठा तू वार कर, जीत का आग़ाज़ कर, तू डर नहीं तू डट वही।
छीन ले जो हक़ है तेरा, ज़माने से उलझ आज, तू बहादुरी का हक़ अदा कर जा,
तू सच है, तू हक़ है, तू परवाज़ है तू आग़ाज़ है, तू डर नहीं, तू डट वही।
Last 6 th line touched me��
ReplyDeleteThank you, I glad you liked that...
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