ख़ामोश लबो की चुप्पी चीरती हुई, एक शोख हँसी,
ग़म के अंधेरो में वो उम्मीद की किरन-सी चमकती
ये तेरा-मेरा क़तरा-क़तरा इश्क़ नहीं तो क्या है।
वक़्त है जो कटा नहीं, ग़म है वो जो कभी गया नहीं,
ज़ख़्मी तू भी कहीं और चोट मैंने भी बहुत खाई हुई,
दिल बुझा हुआ-सा लेकिन, थामे हैं दोनों उम्मीद की लो,
ये तेरा-मेरा क़तरा-क़तरा इश्क़ नहीं तो क्या है।
आगाज़ कैसे हुआ पता नहीं, अंजाम क्या कुछ ख़बर नहीं,
अहसास हैं दबे से, कुछ कभी कहा नहीं, कोई डोर है बंधी-सी,
साथ है एक अनमोल-सा, रिश्ता वो, जिसका कोई नाम नहीं,
ये तेरा-मेरा क़तरा-क़तरा इश्क़ नहीं तो क्या है।
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