©Iram Fatima 'Ashi'
Sunday, 30 October 2022
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क्यों नहीं?
©इरम फातिमा 'आशी’
वो दर्द, वो आहें, वो तड़प, वो जद्दोजहद ज़िन्दगी के लिए,
वो चला गया दुनिया से तो, फिर मुझ में से जाता क्यों नहीं?
सदाए दी उसको, बहुत पुकारा भी, इबादते की और मन्नते भी,
मांगा उसे सजदों में बेपनाह, फिर दुआये मेरी क़ुबूल हुई क्यों नहीं?
पल-पल रिस्ता
है ज़ख़्म-सा, नम आंखे हैं, ग़म है के ठहर
गया मुझ में,
बीत गया जो छीन के
मुझसे सब मेरा, फिर
वो लम्हा गुज़रा क्यों नहीं?
मुझ में वो जीता है
या मर गया मैं
साथ उसके, गर मैं उसका हिस्सा हूँ,
वो दफ़न होकर
सुपुर्द-ए-ख़ाक हो
गया, फिर मैं अब तक मरा
क्यों नहीं?
कहते हैं, जिसका था उसने ले लिया उसको, सब्र करो मरने पर उसके,
करके विदा उसको ख़ुद से, मैं ज़िंदा रह तो गया, फिर जीया क्यों नहीं?
Friday, 14 October 2022
लाजवाब आँखे
©ईरम फ़ातिमा 'आशी'
वो सुख़नवर काजल को, क़लम की स्याही बनने चले हैं,
नादाँ हैं ये ख़बर नहीं, नशे से लबरेज़ हैं, ये शराब आँखे।
मतब-ए-इश्क़, की गिरफ़्त से भला कौन निकल सका,
ये ही ज़िन्दगी की दिलकश, सहर-ओ-शाम आँखे।
ख़ार-ए-दामन में महकते गुलाबों का है, आशियाँ,
वो फ़क़त चुन के ख़ार, लिखेंगे बेमायनी आँखे।
सुकूत-ए-क़ल्ब अब उनका रहे भी तो किस तरह,
इज़्तिराब करतीं हैं किस क़दर शोर, ये हमारी आँखे।
किस तरह बच सकोगे, वार-ए-शमशीर से इनकी,
के ख़ुदा ने बक्शी हमें दिल-फरेब, लाजवाब आँखे।
*सुख़नवर – हुनरमंद, *मतब – मदरसा, *ख़ार - काँटे *सुकूत ए क़ल्ब - दिल की ख़ामोशी, *इज़्तिराब – बेचैनी, *वार ए शमशीर - तलवार का वार
I am part of you
©Iram Fatima 'Ashi'
I am the
smell, the aroma that you hold in your mind.
You feel my
presence in that smell of love and feels being loved.
I am a heart throb of your heart that you hold in your mind,
A beat of your heart that fastens and sometimes slowdowns.
I am a fascination and beauty that you hold in your mind,
That you
feel whenever you think of me and feel beautiful.
I am an emotion, a sentiment that you hold in your mind,
Which gives you strength and sometimes makes sentimental.
I might not physically be there, but you hold me in your mind.
To feel the ecstasy and to calm your soul, I am part of you.
Sunday, 26 June 2022
All stories don't have a proper beginning or an end
Few stories are created by the creator himself,
Untold, unimaginable, and beyond expectations,
He plants, plots and plays with the strings of puppets,
And those souls dance according to the pulls at different times.
Worldly writers flow with directions by holding a pen,
To come up with a creative piece, desirous to create,
Something unique to be remembered after them,
But they are just representing what was already planned.
In different eras some fairy tales are written,
Devils fall for the princesses and it goes on, and vice versa,
Changing its characters and situations, sentiments are beyond logic,
It’s beyond understanding, all stories don't have a proper beginning or an end.
©Iram Fatima 'Ashi'
Thursday, 12 May 2022
निगाह-ए-क़हर
रतजगे किये अपने ही इंतज़ार में हमने, भटका किये अंधेरो में,
उम्मीद-ओ-आरज़ू की दिखेगी रौशनी, के कहीं तो सहर होगी।
ज़िन्दगी में दोस्त बेहिसाब थे, मगर मुफलिसी रही मोहब्बत की,
सजदे किये खूब इबादत में मगर, दुआये हमारी बेअसर रही होंगी।
अहद-साज़ कुबूल कर लिया सब, पर कोई हमे ना अपना सका,
इंफिरादी कोशिशें हमने कीं, यकीनन उनमें कोई कसर रही होगी।
जो हमनवा दूरअंदेश थे, वो मंज़िल गर्दनना हुए और सुक़ू पा गये,
गम-गश्ता हुए हम, मुमकिन है के हमारी ज़ईफ़-अल-बसर होगी।
मनाये तो कैसे, के सबब मालूम नहीं उनकी बा’इस-ए-नाराज़गी का,
देखकर ख़ाक कर देते, के ख़फ़ा होके उनकी निगाह-ए-क़हर होगी।
अहद-साज़ - युग की शुरुआत
इंफिरादी- अकेले
मंज़िल गर्दनना – ठहर जाना
हमनवा- दोस्त
गम-गश्ता – खो जाना
निगाह-ए-क़हर- गुस्से से देखना
बा’इस-ए-नाराज़गी- नाराज़गी की वज़ह
नामालूम सफ़र
ख़ुशशक्ल वो और ख़ुश मिज़ाज भी, जब मिला बड़े ऐतियात से मिला,
डर था उसे जज़्बाती हो जाने का, वो जब मिला बड़े परहेज़ से मिला।
बैठे साथ कुछ लम्हे और बेतक़ल्लुफ़ बातें भी की ज़मानेभर की,
हाथ मिलाया मगर नरमी से, वो जब मिला बड़े परहेज़ से मिला।
ये नहीं के वो खुदगर्ज़ है, लेकिन इस क़दर ख़ौफ़ ज़रूर है उसे,
अपनेपन से परहेज़ है उसे शायद, वो यू दायरे बना के मिला।
अजब सफ़र जो रुका ही नहीं, ये वो लम्हा जो कभी थमा ही नहीं,
लफ्ज़ जमे से रह गये दरमियान, के किसी ने कुछ कहा भी नहीं।
नामालूम सफ़र और बेनाम मंज़िल, साथ हैं पर कोई वादा नहीं,
दर्द एक है शायद जिस से जुड़कर वो हमदर्द से, हमसफ़र बना।