Saturday, 27 July 2019

मुलाकात




बेताबियों का सिलसिला है हर सूशबोरोज़ इस कदर तंहा कर गए,
ग़र यू बिछड़ना ही था,तो मुलाकात क्यों हमसे यू कर गए।

दिल है बेचैनज़हन परेशॉ-सानिग़ाहें भटक रहीं है दर--दर,
वो आए महमान बनकर दो दिन और फिर पूरा शहर सूना कर गए।

ज़िद थी कभी तुझे पाने कीवो जूनून की हद तक,
वो मिलने आए हमारे मरने से पहलेदुआएँ पूरी होते ज़माने लग गए।

कह दो के ले जाए वो फूलतोफ़ेअहसास और यादें सारी,
इस क़दर मुहब्बत दी केहमें अपनों में ग़ैर वो कर गए।

एक शिकवा था ज़िदगी में के मुहब्बत ना मिली हमें कभी,
वो आए महर्बा बनकर और मुहब्बत मुक्कमल कर गए।



Wednesday, 26 June 2019

मैं कौन हुँ




मैं काल हुँ, महाकाल हुँ,
मैं दर्द हुँ, चीख़ की पुकार हुँ,
मैं बला हुँ, जो टले नहीं,
मैं यम हुँ, जो अड़े वहीं,
मैं डरावना, मैं ख़ूख़ार हुँ,
मैं दहक हुँ, मैं आग हुँ,
मैं कलंक हुँ, मैं दाग़ हुँ,
मैं अंहकार हुँ, मैं बिमार हुँ,
मैं तबाही का आसार हुँ,
मैं जो सुनाऊ, तू सुन वही,
मैं कहू, तू कह वही,
मैं कहू, तू ख़ा वही,
मैं कहू, जैसे तू रह वही,
मैं इंसा नाम का, मैं इंसानियत से परे,
मैं जनवार को करता शरमसार हुँ,
मैं मानव-सा, पर दानव हुँ, 
मैं तेरी मौत की पैग़ाम हुँ,
मैं अहम, मैं अंकार हुँ,
मैं आज, इंसाफ का ठेकेदार हुँ,
मैं ही बताऊ, जुर्म तेरा,
मैं ही तेरी सज़ा, सुनने को तलबगार हुँ,
मैं इंसानियत से परे, पथ्थर से बना,
मैं हमदर्दी से दूर, भावहीन-सा,
तू बेबस है, तू लाचार है,
तुझे जीने का नहीं कोई अधिकार है,
तू ख़ून में लतपत, लोथड़ा कोई,
तू दम बा दम साँसे लेता, मजबूर कोई,
तू पानी माँग और जीने का हक भी,
तेरी तस्वीरे लेता, एक मशीन-सा,
मैं विजयी, मैं शक्तिशाली,
मैं राजनिति, मैं ही मोहरा हुँ,
मैं ही बहुत और मैं ही थोड़ा हुँ,
मैं कलयुग का, भद्दा चेहरा हुँ,
मैं आज का, बदसूरत सच हुँ,
मैं अभिशाप हुँ, एक फैली महामारी हुँ,
अब कफ़न बाँध के निकलों सर पे,
किसी भी को, मारने पर उतारू,
मैं भंयानक, मैं ख़ून की प्यासी,
मैं भीड़ हुँ, मैं भीड़ हुँ, मैं भीड़ हुँ...



Sunday, 9 June 2019

मेरा हक है




मेरे उन जज़्बातों पर जो सिर्फ तुम्हारे लिए हैं,
वो साँसे जो लीं, तुम्हारे लिए जीने की खुआईश में,
वो लम्हें जो सिर्फ तुम्हें याद करके गुज़ारे,
मेरे खु़आबो-ख़यालों पर, सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है।

मुझ से ना कोई सवाल हो, ना जवाब देही किसी बात की,
मैंने माँगा नहीं किसी से किसी को, ना कोई दावा किया,
दिल की बातें दिल में ख़ामोशी से दफ़न की हमेशा,
मेरे बापर्दा मुहब्बत पर, सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है।

खोल लिया मैंने भी रोज़ा, तेरी यादों के फाके के बाद,
उस पर सब्र भी के तेरे दीद के बैग़र, मंज़ूरी दे दी ईद को,
तेरी मुहब्बत के लिबास में अब नमाज़ अदा होगी मेरी,
मेरे ईश्क की हर इबादत पर, सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है।

दिल है नादा और उसमें अरमान बेहिसाब,
गुनाह तो जब हो, के हम ज़ाहिर करें तमन्ना कोई,
बेज़ुबा है दिल और इंतेज़ार में आँखें मेरी,
बंदिशे में पले मेरे प्यार पर, सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है।

मेरी खुआईशें, अब तुम्हें हासिल करने की नहीं,
मेरे आदतें, अब तेरा पीछा करने की नहीं रही,
अब वो सब भी नहीं करती जो तुम्हें पसंद जाए,
मेरे हर अंदाज़ पर, सिर्फ और सिर्फ मेरा हक है।


Thursday, 18 April 2019

To witness nature from the height




In the lap of nature, a widely open view,
Beautiful to watch, welcoming with open arms,
Trapped in strange fascination, felt good with pride,
When I get a chance to witness, nature from the height.

Tiny moving creatures, a close look of flying birds,
Chilled airwaves are touching with wet clouds,
Climate and my mood, on its peak and delight,
When I get a chance to witness nature from the height.

I wish I could be a photographer to capture this moment,
Or I would be a painter to paint this splendor scenery,
A musician to compose a song, or a poet so that I can write,
When I get a chance to witness nature from the height.

I wish you could be here by my side, close by,
With this playful nature, absorbing all this exquisite,
I want to witness this beauty, while hugging you tight,
When I get a chance to witness nature from the height.




Tuesday, 2 April 2019

Yes, I Met With Maruti (Review)



"Yes, I Met With Maruti” written by Dakshesh Trivedi, a young and emerging author.
The story is damn indulging which is based on Gujarat's place Vadodara and characters are college students. Although the book is pure fiction many young people would find it relatable in many senses, student life, friends, crushes, clashes with parents, love for movies and struggle for future. Uses of Gujarati language and festival made me curious to know more about that culture. 
The most fascinating point which I like to mention is ‘Power of Imagination’, this gives new hope and dream to the main protagonist and enlightens us as a reader.
The book is interesting to read and this story has a proper start, climax, and end. As a reader, I traveled to a new world of relationships and ambitions and ups and downs of life.
Thank you, Dakshesh Trivedi, for sharing your ‘Power of imagination' with the rest of the world, I wish you all the best for your next creative endeavor.



Sunday, 17 March 2019

सुनो


सुनो,
उस दिन, तुमने वो तस्वीर भेजी थी ना,
जिसमें मेरी पेंटिग ऊपर के ख़ाली पडी़ दिवार पर,
धूल में अटी हुई, पुरानी यादों के साथ टंगी थी,
वो जानकर, आँखें झलक-सी गई मेरी।

सुनो,
तुमने मेरे वो अर्चीज़गैलरी से लिए हुए,
बल्क एड वाईट कार्ड, जो मैंने बहुत ढूढ़ कर चुने थे,
तुम्हें बर्थडे पर देने के लिए, फाईल में रखे हैं तुमने,
वो जानकर, आँखें झलक-सी गई मेरी।

सुनो,
वो किताब भी रखी है ना, जिस पर शरारत में,
कुछ लिख कर भेजा था मैंने, चिढाने के लिए तुम्हे,
तुमने बताया के वो पेज़ आज भी यू ही मुड़ा हुआ है,
वो जानकर, आँखें झलक सी गई मेरी।

सुनो,
मुझे लगता था के हर दिन नया रखने की खुआईश में,
आपने उन्हे कूड़े की मानिद जाने दिया होगा,
वो इतने अहम होंगे और यू बरसो सजों के रखोगे,
वो जानकर, आँखें झलक सी गई मेरी।

सुनो,
एक सवाल है जो गूंजा करता है ज़हन में,
फेंक क्यो नहीं देते, इतनी पुरानी बेकार चीज़ो को,
क्यो सम्भाल कर रखा है उन्हें किसी ख़ज़ाने की तरह,
मुझे भी तो यू ही जाने दिया था, रोकने की कोशिश किये बग़ैर....