Tuesday 27 October 2015

तेरे लिए




मेरी सोच तुझ से शुरू, ख़याल तुझ पर ख़त्म ।

मेरा आग़ाज़ तुम से ही, मेरा अंजाम तुझ पर ख़त्म।


ये चाह तेरे लिए, मेरी खुआईशे तुझ पर ख़त्म ।

मेरी तड़प तेरे लिए, मेरा सूकून तुझ पर ख़त्म।


मेरी तलाश तेरे लिए, मेरा हासिल, तुझ पर ख़त्म।

मेरा प्यार तेरे लिए, मेरे जज़्बात तुझ पर ख़त्म।


मेरा वक़्त तेरे लिए, मेरी मसरूफियत तुझ पर ख़त्म।

मेरी धड़कन तेरे लिए, मेरी साँसें तुझ पर ख़त्म।


मेरा सफ़र तेरे लिए, मेरी मंज़िल तुझ पर ख़त्म।

मेरी ज़िंदगी तेरे लिए, मेरी मौत तुझ पर ख़त्म।



Wednesday 14 October 2015

तशनगी




तेरे आग़ोश-ए-मुहब्बत में क़ैद-ए-बमुशककत तो मिली, हमें रिहाई ना मिली,

इश्क़ किया यू बेपनाह के, काफ़िर में शुमार कर दिए गए, इबादत की पर ख़ुदाई 


ना मिली।


हम पे क्यों कर ना हो बूतपरस्ती का दावा, तेरी तस्वीर जो दिल से लगाए फिरते है 
दर-ब-दर,


सूकून की तलाश में निकले, कैफ़ियत-ए-ब़जारा में सिर्फ़ बेचैनियाँ और रुसवाई ही 
मिली।



हम क्या जाने महफ़िल में तंहा कैसे होते हैं, दुनिया में खोने-पाने का अहसास किसे 
कहते हैं,


हम तंहा हो ही ना सके, यादो का एक क़ाफ़िला हमसफ़र हो गया, जो तुझ से जुदाई 
मिली।



हैंरा हैं ये ज़माना मेरी मुहब्बत देख कर, सर झुका लेती हुँ अपने जज़्बातों के एहतराम 
में ही,


सलाम भेजती हुँ हर साँस में तुझको ही, कुछ और ना सही, हमें इश्क़-ए-रहनुमाई तो 
मिली। 


तू जहाँ रह ख़ुश रह, जा तेरे वास्ते दुआ कर दी सितमगर, कहोगे भी कैसे के 
वफ़ादारी ना रही,



हम तो दीया हैं, ख़ाक हो जाएँगे लौ के साथ अपनी, तशनगी जो तेरे लिए थी, कभी हरजाई ना मिली।





Thursday 8 October 2015

दो हमसफ़र





आँखो की बंदिशो में बँधे दो बाशिंदे, फ़ुरसत के लम्हे चुराके, ज़माने भर से,


एक दूसरे के क़रीब, गुमशुदा खुद में, वहम ही सही, जी रहे लम्हे हसीन-से।



ये परिंदे जुदा, कुछ ख़फ़ा रस्मों से, तलाशते अपने हिस्से का असमां और ज़मीं,

ख़ुशियाे के पायदान से लुढ़कते-सम्भालते, ग़मों की बारिश में फड़फड़ाते, भीगे से।


कभी सम्भालते हैं एक दूसरे को, तो कभी बन जाते वजह मुस्कुराने की,

बेमक़सद, बेवजह, बेमायनी, बेवफ़ा ज़िंदगी के फ़लसफ़ो में उलझे से।


वक़त के मारे, ज़माने से हारे, अपने वजूद की तलाश में इम्तिहान से गुज़रते,

दिल हुई ज़ुबा, छूटे लफ़्जो के कारवाँ, हक़ीक़त से परे, बँधे मुहब्बत से।


हौले से बढ़ती ज़िंदगी, रेत से सरकते पल मठुठी में रोकने की कोशिश में,

वफ़ाओ से लबरेज़, मुख़तलिफ़ राहों पर सफ़र करते दो हमसफ़र से।