Thursday 26 November 2015

हसरतें




यादों में गुम हो जाऊँ कहीं मैं और कोई ढूँढ ना पाए मुझे,

ऐसे में हौले से तुम मेरे रूबरू हो जाओ तो क्या बात है।


अपनी ज़ुल्फ़ों की तारिफ़ में सुने हैं  क़सीदे बहुत मैंने,

कभी तुम उलझी ज़ुल्फ़ें सुलझा जाओ तो कोई बात है।


कहते हैं के आतिश ए ईश्क होती है दोनों जगह बराबर,

आकर कभी हमें तड़प समझा जाओ तो कोई बात हैं।


हसरतें यार कुछ इस तरह रही अधुरी, दोनो ही रहे मशगूल,

अपनी ज़िंदगी से मेरा हिस्सा, मुझे दे जाओ तो कोई बात है।


कब सूरज  मिल सका हैचाँद से दिन के उजाले में,

कभी अंधेरे में दिल का दीया जला जाओ तो कोई बात है।


सुना है ऐ ख़ुदा, तू हमेशा माँगी हुई हर दुआ क़ुबूल करता है,

मेरे रहबर बन के वो शक्स, मुझे लौटा जाओ तो क्या बात है।




Thursday 12 November 2015

अनकहे रिश्ते




कुछ वो अहसास जो किसी के दिल से फिसल कर लबों की दहलीज़ पर हौले से उतर आए
,
सरग़ोशी की तपीश पिघला गई और हसींन खुआब, किसी के सच की तरह चमक उठा।


झुक गई किसी हसीं की पलके, नए ईश्क के अनगिनत अनछूए अहसासों में डूब कर,

सिहर सा गया सोच कर कुछ, कोई महज़ लफ़्ज़ों की अजीबोग़रीब छुआन भर से।


वो मासूम सा अहसास ओस की बूँद-सा किसी की रूह में छुपा होगा जाने कितनी सदियों से,

तभी उतर गया दिल में, किसी के कहने भर से और लम्हों को यादगार बना गया उम्र भर को।


उस पाक मुहब्बत का एहतराम और सलाम उस जज़्बे को जो अनकहे रिश्ते में बाँध जाए,

रस्मों और जिस्मों की दरकारों से परे, ईश्क के रंग में लिपटे जज़्बाती पाक रिश्ते।


एक मुट्ठी जुर्रत चाहिए उलझने को जहाँन से, गर हमसफ़र बनाने को चाहिए वो शक्स,

वरना फिर रह जाएगी तड़प ज़िंदगी भर के मलाल के साथ, दो जिस्म तड़पा करेंगे बिछड़ कर यू।


तू मेरे लिए है





एक चेहरा ज़हन में आया, जिसकी कभी जुस्तजू की थी,

कुछ ख़ास कहने को नहीं था, सो कहा ही नहीं,

गिले शिकवे भी नहीं करने थे, तुमसे सो किए ही नहीं,

हमारी राहें थी जुदा, रिश्ता भी कुछ बेनाम-सा था।


बस देखना चाहती थी, मिलकर उस शक्स को,

जो मेरे दिल में रहकर रूह से बावसता है मेरी,

मेरी धड़कने मुझ में उसी का नाम क्यों लेती हैं,

साँसें आज भी मेरी मुझ में, उस ही का दम भरती हैं।


वो प्यार जो कुछ दे गया वजूद को मेरे और,

ले भी गया मकसद ही मेरे जीने और मरने का,

इस क़ायनात का हुँ हिस्सा मैं, साँसें भी हैं रवाँ-सी,

वो चेहरा क्या आज भी देता है, तेरा ही ग़ुमाँ सा।


हाँ तुम आज भी वही हो, मुहब्बत की सौग़ात लिए,

पर दुनिया की रस्मों से बेबस और मजबूर।

यू तंहाई में बहुत सी दिलकश बातें हैं तुम्हारी,

मिलने बिछडने की वजहें और शिकवे-शिकायतें।


फिर चल देना अपनी अलग-अलग रहगुज़र पर,

फिर छोड़ देना, मुझे तंहा, अपनी यादों के साथ,

फिर कश्मकश में हुँ आज, क्या ईश्क सिर्फ़, 

तंहा और छुप कर किसी जुर्म की तरह होता है?


रिवायते कर जाती है इस क़दर लाचार ज़िंदगियों को,

तेरी याद की बेख़ुदी में फिर दिल बेचैन सा है,

सरग़ोशी में लबों से तेरा नाम फिसला-सा जाता है,

तेरी रुसवाई ना हो, बहुत एहतियात की इसके लिए।


बेदम हो कर हयात यू अब हाथ से फिसली-सी जाती है,

अब इसे तेरी उल्फ़त का इम्तिहान समझ या मेरी खुआईश,

ये सिलसिला मेरी साँसों के साथ ख़त्म होने से पहले ही,

कह दे थाम के हाथ मेरा, तू मेरे लिए है, सिर्फ़ मेरे लिए हैं।






Monday 2 November 2015

मैं एक इंसान हुँ.....




मैं हैंरा हुँ, परेशां हुँ, ये कैसे सवाल हैं हर सू , मुझ पर उठी उँगलियाँ क्यों,

मै अपने ही वतन में अजनबी-सा, बेघर हुँ, कहते हैं के मैं मुसलमान हुँ।


ये मेरी मिट्टी, ये मेरा चमन, यहाँ पैदाईश मेरी, क़ुर्बां हुए मेरे पुरखे इस की आज़ादी के लिए
 
फिर दर-ब-दर मैं ही क्यों, नफ़रत है निगाहों में हर सू, कहते हैं के मैं मुसलमान हुँ।


मेरे मज़हब ने सिर्फ़ मुहब्बत और इंसानियत सिखाई मुझे, मिल कर रहा सदियों
से मैं सभी से,

नहीं जानता किसी दहशतगर्दों को, अपने घर में महफूज़ नहीं, दहशत में ख़ुद हुँ, के मैं
मुसलमान हुँ।


मैंने एहतराम किया घुंघट का हमेशा, मेरी बेटी के नाकाब पर तुम्हें एतराज़ आज क्यों,

मैंने तुझे बदलने को नहीं कहा कभी, मेरे लिबास पर शक तुझे, क्यों के मैं मुसलमान
हुँ।


मैंने पूजा की मूर्तियाँ बनाई, माला और खड़ाऊँ भी, साथ दिया तेरा हर दौर के

त्यौहार में ही,

मैंने होली खेली और दिवाली भी रोशन की, डांडिया पर अब मेरे पहरा क्यों, के मैं
मुसलमान हुँ।


मैं मज़दूर हुँ, कहीं मालिक भी, हीरो फ़िल्मों में भी, अपने हुनर और इल्म से कमाता हुँ,

सरहद पर भी फ़िदा होता हुँ वतन के लिए, जाँनशी मैं हर दोस्त के लिए, के मैं
मुसलमान हुँ।


सियासत के बहके रहनुमाओ, भाई-भाई में फ़र्क़ तुम जताते हो, गर्ज के लिए अपनी उन्हे

लडवाते हो,

तुम्हारी सियासत की सिकती रहे रोटियाँ, तुम मेरी बली चढ़ाते हो, के मैं मुसलमान हुँ।


मैंने पढ़ी क़ुरान, बाईबिल, गीता, गुरू ग्रन्थ भी, तालीम ने मुझे और एहतराम सिखाया 
सभी का,

मैं एक बाशिंदा इस मुल्क का, हक़ की बात कहूँगा, मुसलमान से पहले,इंसान हुँ, इंसान 
हुँ,मैं एक इंसान हुँ।





Sunday 1 November 2015

My Love



When life seems worthless, efforts go vain,
Think of me, I will turn my love into rain,
To cool you down, to penetrate my emotions,
Into the beats of your heart, to touch your soul,
To caress you gently and to calm you down,
To love you till my body turns to dust,
When you feel lost in the desert of worldly flock,
close your eyes and let my thoughts knock,
I will please you  and free you from block,
Accompany you to smile and let you rock,
Back to life, enjoy beauty and don’t be unruly,
I am always there with you eternally.


Togetherness







I inhaled thousand deaths and crossed oceans of lives, to acquire this moment,
Where you are in front of me wrapped in roses of shyness, blushing and beautiful.

I am desirous to be close, to absorb the moment of our reunion of immortal love,
You and I were yearning for this precious togetherness since so many years.

Clock is running fast and every passing tick is taking me away from you,
I want to live all the moments of happiness and all joys of the hues of blue.

I am desirous to exchange breaths and heart beats and hold this time for us,
A nervous hassle is following between us and creating, a strange fuss.

Dear come close to me, I don't want this eternal moment to go by, in the abyss
Love me so much that we can fill the empty gaps of differences left amiss.

You and I are all alone living in separate corners; this eternal get-together is set,
To reunite two loving souls existing in different bodies, restless until we meet.