Sunday 26 February 2023

विध्वंस

 ©इरम फातिमा 'आशी'

 

द्वेष है, क्रोध है, जवालामुखी रोष का है,

मस्तिष्क अशांत है, मन में अग्नि का प्रशांत है,

निहत्था हुआ है असमर्थता, ये कौन बुद्धिभ्रंश है,

कौन है लहू से लतपत पड़ा, ये कौन अग्नि के हवाले कर दिया,

मानवता शर्मसार हुई, प्रश्नों से भरा, कष्टप्रद संसार है,

प्रकृति विस्मित है, ये कौन है जो मौत के घाट उतर दिया,

खून के छींटे लिए खड़ा, ये कौन है जो कातिलों के साथ है,

एक माता के नाम पर, किसी के पुत्र का प्राण हर लिए,

ममता की नेत्रों में अश्रु हैं, पुत्र किसी का लहुलहान है,

पीड़ा है जो थमी नहीं, दुःख की सीमा अपरम्पार है,

केवल एक व्यक्ति नहीं, दुष्ट ने मारा, सारा परिवार है,

ये शक्ति का है प्रर्दशन, या मानवता का विध्वंस है?






Monday 20 February 2023

दस्तक

दस्तक दी है किसने, ये मेरे सूने दर पर आकर,

ये कौन है, जो सेहरा में भटकना चाहता है।

 

कैसे कह दू आनेवाले को, के कोई नहीं है यहाँ,

मुझ में, मैं ना सही, एक सन्नाटा-सा तो चलता है।

 

ख़ाली-घर, दरों-दिवार, खिड़की, ये रोशनदान,

तन्हा हैं साथ मेरे, पर इंतज़ार इनमें कोई करता है। 

 

एक घड़ी है दिवार पर, जो दो पल भी ना रुकी,

वक़्त है जो मेरी तरह, मुझ में थमा सा रहता है।

 

अंधेरो में मैं भटका किया, पर रोशन रहा हमेशा,

उसकी यादों में, इस दिल दीया-सा जला करता है।