Wednesday 25 November 2020

हिसाब


 

 

वो बेनींद राते, वो बेचैन दिन, वो मायूसी, वो बिखरें ख़्वाबों का सिलसिला,

वो तुझे पाने की चाहतें, वो तेरे बिना जिये जाना बेदिली से, खुद की ही ज़िंदगी। वो हिसाब लगाया मैंने गुज़रे हुए लम्हों का, तो कहाँ जाओगे,

जो खोया है मैंने सब कुछ तुम्हे खोकर, क्या तुम वो लौटा पाओगे।

 

कहते हो के अब सही है सब, लौट आया हूँ ना तुम तक,

मेरी उम्र गुज़र जाने के बाद,वो सज़ा-सी कटी ज़िंदगी का क्या?

वो हिसाब लगाया मैंने गुज़रे हुए लम्हों का, तो कहाँ जाओगे,

जो खोया है मैंने सब कुछ तुम्हे खोकर, क्या तुम वो लौटा पाओगे।

 

फिलहाल की चाहतों और  दिल की राहतों के लिए ख़ुश हो भी लूँ,

हिज्र की तकलीफे और वो बेहिसाब बेचैनियां कभी भुला सकुंगी क्या?

वो हिसाब लगाया मैंने गुज़रे हुए लम्हों का, तो कहाँ जाओगे,

जो खोया है मैंने सब कुछ तुम्हे खोकर, क्या तुम वो लौटा पाओगे।

 

 

गुज़रे वक़्त की नाकामियों की ज़िम्मेदारी और मुझ पर इल्ज़ाम बहुत,

ये रिश्ता निभाने को तुमने क्या किया था? मेरे भी हैं सवाल बहुत, बहुत,वो हिसाब लगाया मैंने गुज़रे हुए लम्हों का, तो कहाँ जाओगे,

जो खोया है मैंने सब कुछ तुम्हे खोकर, क्या तुम वो लौटा पाओगे।

 

बेमक़सद, मायूस सी ज़िंदगी कट जाने पर कोई मिल भी जाए तो क्या,

मुर्दा दिल, जिन्दा जिस्म में कब कोई खवाइशे कहाँ साँस लिया करती हैं,वो हिसाब लगाया मैंने गुज़रे हुए लम्हों का, तो कहाँ जाओगे,

जो खोया है मैंने सब कुछ तुम्हे खोकर, क्या तुम वो लौटा पाओगे।