Sunday 6 November 2022

तूने देखा ही नहीं

ये जद्दोजहद नाम है ज़िन्दगी का, दर्द है तो ज़िन्दगी है और ज़िंदा है तू,

तूने आज़ाद ही नहीं किया जिसने जाना चाहा, इसलिए वो तुझमें से गया नहीं।

 

क्यों पुकारता है उसे जो सुनेगा नहीं, तमन्ना क्या करनी, जो आयेगा नहीं,

ख़ुद के लिए मांग ले दुआयें, सुनहरा है मुस्तकबिल, तूने वो देखा ही नहीं।

 

जाने दे जो बीत गया, तू दस्तक सुन के उन पलो की जो आने को हैं,

ख़ुशियाँ भी आएगीं, फिर सब बादस्तूर चलेगा तूने आगे देखा ही नहीं।

 

वक़्त से पहले मरता नहीं कोई, वो आमाल कर गया क़यामत तक के लिए,

 हर जान को ख़ाक होना है, तू जी ले खुलकर के फ़ना अभी तुझे होना नहीं।

 

सब्र गर ना भी आया तो आदत हो जाएगी दर्द की, वो जुदा हो सकता नहीं,

ज़िंदा रहेगा वो तुझमें, इस जहान में दर्ज अपनी मौजूदगी तू करता क्यों नहीं।



Sunday 30 October 2022

Home

©Iram Fatima 'Ashi'

Home is the place, a territory,
Where we find our comfort,
We love to stay and to live and grow,
We like to return and never let it go.
 
Home is the place, a territory,
Our internal weakness to hold,
A powerful zone, a strong point to show,
Our strength we know and never let it go.

Home is the place, a territory,
A blessing from Almighty, which we owe,
A pleasant and a peaceful emotion that flow,
We like it whether fast or slow and never it let go.

Home is the place, a territory,
A feeling of warmth, when it is chilled and snow,
It is tranquility, no matter, through what I go
You are my soul’s home, and I will never let you go.



 

क्यों नहीं?

 ©इरम फातिमा 'आशी


वो दर्द, वो आहें, वो तड़प, वो जद्दोजहद ज़िन्दगी के लिए,

वो चला गया दुनिया से तो, फिर मुझ में से जाता क्यों नहीं?

 

सदाए दी उसको, बहुत पुकारा भी, इबादते की और मन्नते भी,

मांगा उसे सजदों में बेपनाह, फिर दुआये मेरी क़ुबूल हुई क्यों नहीं?

 

पल-पल रिस्ता है ज़ख़्म-सा, नम आंखे हैं, ग़म है के ठहर गया मुझ में,

बीत गया जो छीन के मुझसे सब मेरा, फिर वो लम्हा गुज़रा क्यों नहीं?

 

मुझ में वो जीता है या मर गया मैं साथ उसके, गर मैं उसका हिस्सा हूँ,

वो दफ़न होकर सुपुर्द--ख़ाक हो गया, फिर मैं अब तक मरा क्यों नहीं?

 

कहते हैं, जिसका था उसने ले लिया उसको, सब्र करो मरने पर उसके,

करके विदा उसको ख़ुद से, मैं ज़िंदा रह तो गया, फिर जीया क्यों नहीं?



Friday 14 October 2022

लाजवाब आँखे

 ©ईरम फ़ातिमा 'आशी'

वो सुख़नवर काजल को, क़लम की स्याही बनने चले हैं, 

नादाँ हैं ये ख़बर नहीं, नशे से लबरेज़ हैं, ये शराब आँखे।


मतब-ए-इश्क़, की गिरफ़्त से भला कौन निकल सका, 

ये ही ज़िन्दगी की दिलकश, सहर-ओ-शाम आँखे।


ख़ार-ए-दामन में महकते गुलाबों का है, आशियाँ, 

वो फ़क़त चुन के ख़ार, लिखेंगे बेमायनी आँखे।


सुकूत-ए-क़ल्ब अब उनका रहे भी तो किस तरह, 

इज़्तिराब करतीं हैं किस क़दर शोर, ये हमारी आँखे।


किस तरह बच सकोगे, वार-ए-शमशीर से इनकी, 

के ख़ुदा ने बक्शी हमें दिल-फरेब, लाजवाब आँखे।

 

*सुख़नवर – हुनरमंद, *मतब – मदरसा, *ख़ार - काँटे *सुकूत ए क़ल्ब - दिल की ख़ामोशी, *इज़्तिराब – बेचैनी, *वार ए शमशीर - तलवार का वार



 

I am part of you

©Iram Fatima 'Ashi'

I am the smell, the aroma that you hold in your mind.

You feel my presence in that smell of love and feels being loved.

 

I am a heart throb of your heart that you hold in your mind,

A beat of your heart that fastens and sometimes slowdowns.

 

I am a fascination and beauty that you hold in your mind,

That you feel whenever you think of me and feel beautiful.

 

I am an emotion, a sentiment that you hold in your mind,

Which gives you strength and sometimes makes sentimental.

 

I might not physically be there, but you hold me in your mind.

To feel the ecstasy and to calm your soul, I am part of you.











Sunday 26 June 2022

All stories don't have a proper beginning or an end

Few stories are created by the creator himself,

Untold, unimaginable, and beyond expectations,

He plants, plots and plays with the strings of puppets,

And those souls dance according to the pulls at different times.

 

Worldly writers flow with directions by holding a pen,

To come up with a creative piece, desirous to create,

Something unique to be remembered after them,

But they are just representing what was already planned.

 

In different eras some fairy tales are written,

Devils fall for the princesses and it goes on, and vice versa, 

Changing its characters and situations, sentiments are beyond logic,

It’s beyond understanding, all stories don't have a proper beginning or an end.

©Iram Fatima 'Ashi'



Thursday 12 May 2022

निगाह-ए-क़हर

 रतजगे किये अपने ही इंतज़ार में हमने, भटका किये अंधेरो में

उम्मीद--आरज़ू की दिखेगी रौशनी, के कहीं तो सहर होगी।

 

ज़िन्दगी में दोस्त बेहिसाब थे, मगर मुफलिसी रही मोहब्बत की,  

सजदे किये खूब इबादत में मगर, दुआये हमारी बेअसर रही होंगी।

 

अहद-साज़ कुबूल कर लिया सब, पर कोई हमे ना अपना सका, 

इंफिरादी कोशिशें हमने कीं, यकीनन उनमें कोई कसर रही होगी।

 

जो हमनवा दूरअंदेश थे, वो मंज़िल गर्दनना हुए और सुक़ू पा गये,

गम-गश्ता हुए हम, मुमकिन है के हमारी ज़ईफ़-अल-बसर होगी।

 

मनाये तो कैसे, के सबब मालूम नहीं उनकी बाइस--नाराज़गी का,

देखकर ख़ाक कर देते, के ख़फ़ा होके उनकी निगाह--क़हर होगी।



 

 

अहद-साज़ - युग की शुरुआत

इंफिरादी- अकेले

मंज़िल गर्दननाठहर जाना

हमनवा- दोस्त

गम-गश्ताखो जाना

निगाह--क़हर- गुस्से से देखना

बाइस--नाराज़गी- नाराज़गी की वज़ह


 


नामालूम सफ़र

ख़ुशशक्ल वो और ख़ुश मिज़ाज भी, जब मिला बड़े ऐतियात से मिला,

डर था उसे जज़्बाती हो जाने का, वो जब मिला बड़े परहेज़ से मिला।

 

बैठे साथ कुछ लम्हे और बेतक़ल्लुफ़ बातें भी की ज़मानेभर की,

हाथ मिलाया मगर नरमी से, वो जब मिला बड़े परहेज़ से मिला।

 

ये नहीं के वो खुदगर्ज़ है, लेकिन इस क़दर ख़ौफ़ ज़रूर है उसे,

अपनेपन से परहेज़ है उसे शायद, वो यू दायरे बना के मिला।

 

अजब सफ़र जो रुका ही नहीं, ये वो लम्हा जो कभी थमा ही नहीं,

लफ्ज़ जमे से रह गये दरमियान, के किसी ने कुछ कहा भी नहीं।

 

नामालूम सफ़र और बेनाम मंज़िल, साथ हैं पर कोई वादा नहीं,

दर्द एक है शायद जिस से जुड़कर वो हमदर्द से, हमसफ़र बना।