Thursday 12 May 2022

निगाह-ए-क़हर

 रतजगे किये अपने ही इंतज़ार में हमने, भटका किये अंधेरो में

उम्मीद--आरज़ू की दिखेगी रौशनी, के कहीं तो सहर होगी।

 

ज़िन्दगी में दोस्त बेहिसाब थे, मगर मुफलिसी रही मोहब्बत की,  

सजदे किये खूब इबादत में मगर, दुआये हमारी बेअसर रही होंगी।

 

अहद-साज़ कुबूल कर लिया सब, पर कोई हमे ना अपना सका, 

इंफिरादी कोशिशें हमने कीं, यकीनन उनमें कोई कसर रही होगी।

 

जो हमनवा दूरअंदेश थे, वो मंज़िल गर्दनना हुए और सुक़ू पा गये,

गम-गश्ता हुए हम, मुमकिन है के हमारी ज़ईफ़-अल-बसर होगी।

 

मनाये तो कैसे, के सबब मालूम नहीं उनकी बाइस--नाराज़गी का,

देखकर ख़ाक कर देते, के ख़फ़ा होके उनकी निगाह--क़हर होगी।



 

 

अहद-साज़ - युग की शुरुआत

इंफिरादी- अकेले

मंज़िल गर्दननाठहर जाना

हमनवा- दोस्त

गम-गश्ताखो जाना

निगाह--क़हर- गुस्से से देखना

बाइस--नाराज़गी- नाराज़गी की वज़ह


 


नामालूम सफ़र

ख़ुशशक्ल वो और ख़ुश मिज़ाज भी, जब मिला बड़े ऐतियात से मिला,

डर था उसे जज़्बाती हो जाने का, वो जब मिला बड़े परहेज़ से मिला।

 

बैठे साथ कुछ लम्हे और बेतक़ल्लुफ़ बातें भी की ज़मानेभर की,

हाथ मिलाया मगर नरमी से, वो जब मिला बड़े परहेज़ से मिला।

 

ये नहीं के वो खुदगर्ज़ है, लेकिन इस क़दर ख़ौफ़ ज़रूर है उसे,

अपनेपन से परहेज़ है उसे शायद, वो यू दायरे बना के मिला।

 

अजब सफ़र जो रुका ही नहीं, ये वो लम्हा जो कभी थमा ही नहीं,

लफ्ज़ जमे से रह गये दरमियान, के किसी ने कुछ कहा भी नहीं।

 

नामालूम सफ़र और बेनाम मंज़िल, साथ हैं पर कोई वादा नहीं,

दर्द एक है शायद जिस से जुड़कर वो हमदर्द से, हमसफ़र बना।




 

तेरी क़ुरबत

मोहब्बत के पिघलते लम्हों में हमनवा, तेरे साथ होने की महक,

वो ख़ुशी तेरे रूबरू होने की और वो मेरा मुलाक़ात का शौक़।

 

ये क़ुरबत, वो मोहब्बत, वो दम-बा-दम फिसलते हुए पल,

तेरे इश्क़ की आदत और वो फिर बिछड़ जाने का ख़ौफ़।

 

रूहानी इश्क़ ये, क़तरा-क़तरा जी ली ज़िन्दगी इन पलो में,

सौंप दिए ये जज़्बात, जलते चरागों-सा रोशन करके हमने।

 

तेरा हाथ ये मेरे हाथ में, थमा है मेरी नज़रो ने तेरी नज़रो को,

सब्र मेरी मुद्दतो के इंतज़ार का, देखो मेरी मोहब्बत ख़ामोश।

 

नज़र तेरे नूर से रोशन, दिल पुरसुकून हुआ जाता है तुझे देखकर,

ज़हन--दिल दुनिया से बेख़बर, के तू मेरा ख़ुशनुमा-सा है ज़ौक़।