Wednesday 28 October 2020

वो जो मसरुफ है इस क़दर

 


वो जो जज़्बातों को ना समझे, दिलों के इकरार ना माने,

मेरे हर इंतेज़ार से बेख़बर, वो जो मसरुफ है इस क़दर।


वो जो तोले दिमाग़ से ही, वो ना जाने हाल-ए-दिल मेरा कभी,

तवाज़ो को कर दे नज़रंदाज़, वो जो मसरुफ है इस क़दर।


वो मेरा आहटों पर चौकना, वो हर मोड़ पर मुड़ कर देखना,

उससे ही ढूँढे मेरी ये नज़र, वो जो मसरुफ है इस क़दर।


तन्हाईयाँ गूँजती है, इस ज़ेहन से अब उम्मीदें भी हुईं बेअसर, 

 दुश्मन-ए-जान बन गया ये सफ़र, वो जो मसरुफ है इस क़दर।


मैं मजबूर हूँ दिल से और उसकी ज़माने-भर की मजबूरियाँ,

मोहब्बत की वो जो ना करे क़दर, वो जो मसरुफ है इस क़दर।




Monday 5 October 2020

एतराज़



मुझे एतराज़ है...

उनके ज़ुल्म करने सेसचाई छुपाने से

क़ातिलों के साथ हमदर्दी सेइंसानो को बाँट देने से


मुझे एतराज़ है...

नोजवानो में बेकारी और बेरोज़गारी बढ़ जाने से

बढ़ती महग़ाई सेबीमारों का इलाज मुश्किल हो जाने से,



मुझे एतराज़ है...

इबादतगाह तोड़ देने सेबस्तियाँ उजाड़ने से,

जानवर के नाम पर इंसानो को मार देने से,


मुझे एतराज़ है...

बेटियों को ना पढ़ाने वाली सोच सेउन्हें बोझ समझने सेउनके साथ हेवनित वाले सुलूक से,


मुझे एतराज़ है...

ग़रीब किसानो और मज़दूरों के हक़ दबाए जाने से,

कुर्सी की बिसातों सेसियासत के गंदे खेलों से


मुझे एतराज़ है...

और मेरा एतराज दर्ज किया जाएये कहना है मेरा हुक़्मरानो से,

मैं आवाज़ हूँमज़लूमो कीजो कुछ ना कह पाए किसी से....