Wednesday 31 May 2023

शतरंज

वही अँधेरा और वही रात, फिर इन्तिज़ार में मेरे,

शाम के उस कोने में छिपे बैठे मिले,

जहाँ से दिन का सफ़र मुकम्मल होता है,

मैंने सहम के अँधेरे की तरफ देखा तो,

रात, बेबाकी से मुस्कुरा दी,

फिर वही रोज़ की तरफ बिसात बिछाई,

वही शह और मात का सिलसिला शुरू हुआ,

उसने ऊंट, हाथी, घोड़े, रानी सब निकल लिए,

मैं हमेशा की तरह अपने पियादे लिए बैठा रहा,

रात, मेरे साथ शतरंज खेलती रही, छलती रही,

मैं हैरान परेशान उसकी चाले, देखता रहा,

कभी गुज़रे वक़्त की तरफ धकेल दिया जाता,

कभी आने वाले वक़्त की सोच के घबराता रहता,

कभी रिश्ते डराते, तो कभी हालात,

कभी किसी की कही बात को,

अलग-अलग तरीके से सोचकर उलझता,

रात, शतरंज की बिसात पर फिर जीत गयी।

मैं मायूस होकर मातम मनाता इस से पहले,

सूरज की चमक ने मुझे रोशनी दिखाई,

मैं सब समेट कर नये दिन की शुरुआत को,

नयी उम्मीद के साथ चल दिया,

रात झल्लाकर फिर से लौट गयी!