Tuesday 31 December 2019

हमने तब भी अपना वतन हिंदुस्तान चुना था




किसी ने आज कहा, तुमने तब जिन्ना को चुन लिया होता तो आज हिंद में तुम्हारा ये हश्र ना होता।
मैं हौले से मुस्कुरा दिया, हमारे पुरखों के पास जवाब तब भी था और हमारे पास इसका जवाब आज भी है।
तब मौक़ा था, ज़िंदगी और मौत में, जिन्ना और गाँधी में, सरज़मीं से मोहब्बत और नई जगह चुनने में,
लेकिन हमने अपने ज़मीं को न छोड़ना चुना था, हमने तब भी अपना वतन हिंदुस्तान चुना था।


जहाँ कातिल, दुश्मन थे वहीँ अच्छे साथी और जाँनिसार दोस्त तब भी थे और आज भी हैं,
हम तब भी गाँधी की डंडी के साथ चले थे, आज भी उस बापू के रास्ते पर ही चलेगे,
वक़्त तब भी मुश्किल था, आज भी अपने वजूद के लिए ग़र हममें लड़ना पड़ा, लड़ते रहेंगे,
लेकिन हमने अपने ज़मीं को छोड़ना चुना था, हमने तब भी अपना वतन हिंदुस्तान चुना था।


ख़ून से सींचा है है इस मिट्टी को हमने, ये ज़मीं, आसमाँ, सब उतना ही अपना है जितना तब था,
सियासत की बिसात बिछानेवाले, ख़ैरात नहीं हक़ है मेरा, जितना तेरा है ये वतन उतना ही है मेरा,
साज़िशें मेरे ख़िलाफ़ तब भी हुआ करते थीं और भाईचारे की मिसालें तब भी थीं, वो आज भी हैं,
लेकिन हमने अपने ज़मीं को छोड़ना चुना था, हमने तब भी अपना वतन हिंदुस्तान चुना था।


मुझ पर इलज़ाम है बहुत, मेरे वजूद पर सवाल हैं बहुत, चंद गलत लोगो की वजह से मैं हुआ बदनाम बहुत,
पर मैं सब के तीज त्यौहार पर साथ हु, हर कामयाबी और मेहनत में हमवतन तेरे बराबर ही साथ हु,
चल फिर तामीर करते हैं, बापू और कलाम के ख़्वाबों का मुल्क़ मोहब्बत से मिल कर बुनते हैं,
लेकिन हमने अपने ज़मीं को छोड़ना चुना था, हमने तब भी अपना वतन हिंदुस्तान चुना था।


शिकवा नहीं कुछ मुझे मेरे मुल्क़ से, मुझ पर कुछ इल्ज़ाम कल जितना था उतना आज भी है,
मुझ से ख़फ़ा कुछ हुआ करते थे, मेरे हमवतन, तुझसे प्यार कल मेरा जितना था आज भी उतना ही है,
मैं ईमान से मुसलमा हूँ, फ़ितरत में वफ़ा, दिल में हिंदुस्तान जितना तब रखता था उतना आज भी रखता हूँ।
हममें ख़ुशी है, हमने अपने ज़मीं को छोड़ना चुना था, हमने तब भी अपना वतन हिंदुस्तान चुना था।





Saturday 7 December 2019

सुनो...


ये जो बात बात पर तुम आज कल नाराज़ होने लगे हो,
इस रिश्ते में क्या अब वो पहले वाली बात नहीं रही,
या इस रिश्ते का सफ़र इतना ही था, जो अब मुकम्मल हो गया।

सुनो...
बहुत तकलीफ़ होती है मुझे और वजह समझ नहीं आती,
अपने ही जज़्बातों में, मैं दबकर थकान सी रहती है,
नम आँखो और ख़ाली दिन में तुम्हारा इंतेज़ार सा रहता है।

सुनो....
मैं ये नहीं कहती के हमेशा मैं सही और तुम ग़लत होते हो,
पर ये ग़लत सही का फ़ैसला, क्या रिश्ते को भी ग़लत बना देगा,
मैं समझ नहीं पाती के एक अना के लिये, मुझे यू कैसे छोड़ देते हो।

सुनो....
वक़्त के साथ सब बदल जाता है, सुना था बहुत,
क्या ऐसा जज़्बाती और रूहानी रिश्तों के साथ भी होता है?
हालत क्या सच में क़ाबू कर, इंसान को बदल देते हैं।

सुनो...
ये बेवज़ह की कश्मकश और उलझन से मैं निकल कर,
एक मासूम से सवाल का जवाब तलब करना चाहती हूँ,
तुम दूर सही और मजबूर सही पर जहाँ भी हो, मेरे हो ना?


Tuesday 3 December 2019

इम्तहान



ज़िंदगी है इम्तहान, कभी धूप की तपिश, कभी बर्फ़ सी जमी हुई,
मौसम बदलता रहता है, जब इंसान बदले रंग, तू डर नहीं, तू डट वही।

डरावनी ग़र हो कभी ज़िंदगी, तो मौत का ख़ौफ़, तू करना ना कभी,
बदल जाने दे तू रंग-ढंग, पहचान ले चेहरे सभी, तू डर नहीं, तू डट वही।

ज़िंदगी ग़र जंग है तो निकाल ले तलवार तू, लड़ जा गर तुझ पर कोई वार हो,
फूलों की ख़ुआईश हो या दर्द की आज़माईंश हो, तू डर नहीं, तू डट वही।

हाथ ना फ़ैला, ना भीख माँग ख़ुशीयों की, जो तेरा हक़ है छीन ले तू,
तू तिनके उठा, घोंसला बना, तू होसला जुटा, तू डर नहीं तू डट वही।

वक़्त तेरा ना तो क्या हुआ, कोई अपना साथ ना दे, तो रहने दे,
तू कमज़ोर नहीं, तू लाचार नहीं, तूफ़ा है तू, डर नहीं, तू डट वही।

ग़र हर हाथ में कोई तीर है, हर नज़र शमशीर है, तेरा ना कोई साथी ना पीर है,
ख़ंजर उठा तू वार कर, जीत का आग़ाज़ कर, तू डर नहीं तू डट वही।

छीन ले जो हक़ है तेरा, ज़माने से उलझ आज, तू बहादुरी का हक़ अदा कर जा,
तू सच है, तू हक़ है, तू परवाज़ है तू आग़ाज़ है, तू डर नहीं, तू डट वही।