छोड़ कर हाथ मेरा, पूछता है के हाल क्या है,
कह दू के आबाद हूँ, तो फिर बर्बाद हो जाना क्या है?
अँधेरे का हाथ थामे आती है, हर सुबहः आंगन मे मेरे,
ये रोशनी है हर सू, तो फिर ये अंदर अंधेरा-सा क्या है?
महफ़िल मे शोर इतना के, कोई आवाज़ और ना आ सके,
ये भीड़ है हर तरफ़, तो इस मे ये अकेलापन क्या है?
वो शक़्स छत था मेरी, जिस से दूर होकर हो गये बंजारा फ़ितरत,
आशिया कई बन गये पर मेरा कह सकू, वो घर कहाँ है?
दिल कहता है थक कर बैठ जा, यहाँ अब तन्हा ही,
ये ज़िंदगी है तो, सुकूँ की तलाश मे भटकना क्या है?