है वतन से
मोहब्बत तो दावा-ए-अखवत कर,
मोहब्बत कर,
ना किसी से ज़रा भी नफरत
कर,
रिश्ता इंसानियत
का निभाना लाज़िम है तुझ पर,
निभा दोस्तियां,
हुक्मरानो की ना तू
ख़ुशामद कर।
मज़हब कहता है के
इंसान बन पहले,
अपनी जां को भी
फिदा कर वतन पर अपने,
दिल से दिल जीते
जाते हैं अच्छा इंसा बनके,
काम आ सके किसी
के, तू ऐसे यारी निभाया कर।
माना नफरत को है
करना बड़ा आसान इन दिनों,
पर नफरतों का
जवाब तू मोहब्बत से दिया कर,
मिटाना है गर, ग़ुरबत और जिहालत को जहाँ से,
ईल्म है बेहद
ज़रूरी, ये बात सब को
समझाया कर।
कोशिश तो कभी भी
देख, ज़ाया नहीं जाती
कभी ज़ुल्म पर
अपनी आवाज़ ना दबाया कर
दिल-ए-मायूस ना-उम्मीद ना हो, हौसला रख,
जो तूफ़ां सीने
में क़ैद है, उसी से सैलाब
लाया कर।
गर नज़रअंदाज़ होता
नहीं कोई, तक़लीफ़ में देखकर,
बेबस ना हो तू
मज़लूम की आवाज़ बन जाया कर,
तेरी ख़ामोशी को कोई
तेरी कमज़ोरी ना समझ बैठे,
कलम उठा के अपने लफ्ज़ो से शोर मचाया कर।