Thursday 16 November 2023

मेरे मौला

©इरम फातिमा 'आशी'


आजज़ी है, इल्तिजा है, तवको तुझ से ही मौला,

आंख मेरी नम होती नहीं, किसीके सामने मौला,

तुझे इख़्तियार है सुनले या ठुकरादे पुकार मेरी,

ये सर किसी और दर पे झुकेगा नहीं, मेरे मौला।

 

तू रहबर, तू ख़ुदा, तू ही नाख़ुदा इस जहान का,

मुफ़लिस और किसीके दर ना जायेगा, मेरे मौला,

तेरे देने के वादों के एतबार की ख़ातिर,

सजदे से सर कभी ना उठेगा मेरा, मेरे मौला।

 

मुझसे दर्द, अब किसी का देखा जाता नहीं,

हर लाइलाज मर्ज़ को शिफ़ा अताकर मौला,

बेबस, मासूमों की तड़प से तड़पता है दिल,

हर जंग का ख़ात्मा अमन से कर दे मौला।

 

जितना शुक्र करू मैं हर साँस में, वो कम है,

तेरी हर नवाज़िश का तहे-दिल से शुक्रिया, मौला,

मौहलत दे इस हयात में के, कमा लू और नेकियाँ,

ज़िम्मेदारियाँ मेरे हिस्से में बहुत हैं, मेरे मौला।

 

इन सूनी आँखों में तुझ से ही है शम-ए-उम्मीद,

ये दामन तेरे आगे ही फैलाया है, मेरे मौला,

क़त्ल-औ-ग़ारत, फितना-औ-शर है सारे आलम में,

अता कर मोमिन को, ताबूत-ए-सकीना या मौला।




 

 

 

 

 

 

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