Tuesday 2 January 2024

गुमशुदा

 ये कौन-सी जंग, ये कौन-सी ताक़त का मुज़ाहिरा है,

बच्चों और औरतों पर बारिश की तरह गिरते बम,

ज़िन्दगी लाचार है, हर तरफ मौत का तमाशा है,

दुनिया ख़ामोश है, इस क़दर इंसानियत गुमशुदा है।

 

बम के धमाके, आग बरसाता सुभो-शाम आसमा,

ये धुए और धूल में ज़िन्दगियों का खो जाना,

बिल्डिंगो का किसी ताश के पत्तो की तरह भरहा के,

किसी मलवे के पहाड़ में दफ़न ज़िन्दगी गुमशुदा है।

 

बचे हुए लोगो का मलवे में तलाशना,

कुछ जिस्म, कुछ लाशो का टुकड़ो में मिलना,

आँसू, चीखें, दर्द से तड़पते, मदद को पुकारते लोग,

अपनों को ढूढ़ते, कुछ मिलते तो कुछ लोग गुमशुदा हैं।

 

ये दर्द है के थमता नहीं, चीखें हैं के बदस्तूर हैं,

ये तड़प, ये बेबसी, ये बनती टूटती उम्मीदें,

किसी जद्दोजहद से झूझती अनगिनत ज़िंदगियाँ,

जुल्म है, ज़ालिम ताकत के ग़ुरूर में गुमशुदा है।

 

लाचारी है, मासूमों पर रहम, किसी को आता नहीं,

इंसानियत का तकाज़ा, कहीं नज़र नहीं आता,

दिल दहलानेवाली लाशों का अम्बार है हर सू,

जंग नाम पर मौत के बाज़ार में ग़ैरत गुमशुदा है।




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